देश में कैसे हो उद्योगों का विकास
अनीता वर्मा
किसी भी समाज या राष्ट्र की उन्नति में वहां के उद्योग धन्धों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती हैं बिना औद्योगिक विकास के आर्थिक उन्नति पूर्ण रुप से संभव नहीं हैं। क्योंकि बिना उद्योग धन्धो के लोगों को रोजगार नहीं मिल सकता और रोजगार के बिना लोगों के जीवन स्तर में सुधार नहीं हो सकता, रोजगार के बिना किसी भी समाज की आर्थिक उन्नति संभव नहीं हैं।
किसी भी समाज के औद्योगिक विकास में वहां की प्राकृतिक संपत्ति का बहुत बड़ा हाथ होता हैं। अगर इसी प्राकृतिक संपदा का सही तरीके से दोहन किया जाए, तथा उसकी पुनः उत्पत्ति व उसके विस्तार की संभावनाओं को बढ़ाया जाए तो इससे स्थानीय लघु एवं कुटीर उद्योगों के पनपने की संभावनाएं तो बढ़ेगी ही साथ ही लोगों को रोजगार भी मिलेगा, उनके जीवन स्तर में भी सुधार आयेगा। एक समाज की उन्नति पूरे राष्ट्र की उन्नति को प्रभावित करती हैं, यानि किसी भी राष्ट्र की उन्नति में उसके समाज का बहुत बड़ा योगदान होता हैं।
उत्तराखंड में उद्योग धन्धों का विकास बहुत कम हुआ हैं। लगभग नहीं के बराबर हैं यहां पर बड़े उद्योग धन्धें तो हैं ही नहीं, जो थोड़े बहुत हैं भी तो वह मैदानी भागों तक ही सीमित हैं। उत्तराखंड को प्रकृति ने अपार उपहारों से नवाजा हैं, जिससे प्राकृतिक संसाधनों के आधार पर लघु एवं कुटीर उद्योगों की स्थापना आसानी से की जा सकती हैं।
उत्तराखंड में कुछ क्षेत्र ऐसे हैं, जहां फलों की पैदावार बहुत ज्यादा होती हैं, जैसे रानीखेत, रामगढ़, मुक्तेश्वर, जोशीमठ तथा अल्मोड़ा आदि स्थानों में सेब,लीची, अखरोट, अंगूर, खुमानी, चुलू, आडू, पूलम, नशपाती जैसे फल अत्यधिक मात्रा में पाये जाते हैं, लेकिन पहाड़ो में इन फलों की अच्छी पैकिंग कर उनको तुरंत बाजार में पहुंचाने के लिए या फिर इन फलों को संरक्षित करने की कोई ठोस योजना नहीं हैं, जिसकी वजह से यह बहुमूल्य फल प्रतिवर्ष यू ही बरबाद हो जाते हैं, क्योंकि एक बार पकने के बाद फल अधिक समय तक बिना किसी वैज्ञानिक तरीके से संरक्षित किये बिना सुरक्षित नहीं रह सकते, इन फलोत्पादन क्षेत्रों के निकट इन पर आधारित जैम, जूस अचार आदि बनाने के कुटीर उद्योग लगाये जा सकते हैं।
इसी तरह जोशीमठ व अन्य इलाकों में आलू की पैदावार बहुत अधिक मात्रा में होती हैं आलू से बनने वाले चिप्स व पापड़ की बाजार में बहुत अधिक मांग होती हैं यहां पर कुटीर उद्योग लगाने के लिए स्थानीय युवकों को प्रशिक्षण
दिया जाए तो इससे कई नवयुवकों को रोजगार मिलेगा आलू को सुरक्षित रखने के लिए कोल्ड स्टोर खोले जाये।
इसी तरह उच्च हिमालई क्षेत्रों में अनेक प्रकार की जड़ी बूटियां व औषधियां पाई जाती हैं जिनका प्रयोग या दोहन जानकारी के अभाव में नहीं किया जाता, अगर इन जड़ी बूटियों का उत्पादन बागवानी के रुप में किया जाये सही जानकारी उपलब्ध कराकर दवा कंपनियों के साथ मिलकर काम किया जाए, इसे भी एक लघु उद्योग के रुप में विकसित किया जा सकता हैं
उत्तराखंड में रिंगाल और बांस के पेड़ो का उपयोग किया जाए, पशुपालन किया जाए, यानि प्राकृतिक संसाधनों के आधार पर उद्योग लगाये जाए तो इससे स्थानीय लोगों को तो रोजगार मिलेगा ही साथ ही सरकार को भी राजस्व मिलेगा, पर्यावरण प्रदूषण भी नहीं होगा, और उत्तराखंड का भी विकास होगा।
इसी प्रकार पूरे देश में स्थानीय संसाधनों के आधार पर उद्योग धन्धे लगाये जाने चाहिए जिससे भारत आर्थिकरण की ओर अग्रसर होगा।
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