भगत के बस में है भगवान

भगत के बस में है भगवान 


श्रीरुप गोस्वामी जी पर राधारानी जी की कृपा बरसाना में श्री रुप गोस्वामी चेतन्य महाप्रभु के छः शिष्यो में से एक.एक बार भ्रमण करते-करते अपने शिष्य श्री जीव गोस्वामी जी के यहाँ बरसाना आए. 


जीव गोस्वामी जी ठहरे फक्कड़ साधू फक्कड़ साधू को जो मिल जाये वो ही खाले जो मिल जाये वो ही पी ले. आज उनके गुरु आए तो उनके मन भाव आया की में रोज सूखी रोटी, पानी में भिगो कर खा लेता हूं. मेरे गुरु आये हैं क्या खिलाऊँ.. 


एक बार अपनी कुटिया में देखा किंचित तीन दिन पुरानी रोटी बिल्कुल कठोर हो चुकी थी, मैं साधू पानी में गला गला खा लूं. यद्यपि मेरे गुरु साधुता की परम स्थिति को प्राप्त कर चुके है फिर भी मेरे मन के आनन्द के लिए, कैसे मेरा मन संतुष्ट होगा.


 एक क्षण के भक्त के मन में सँकल्प आया की अगर समय होता तो किसी बृजवासी के घर चला जाता. दूध मांग लेता, चावल मांग लाता. मेरे गुरु पधारे जो देह के सम्बंध में मेरे चाचा भी लगते हैं. लेकिन भाव साम्रज्य में प्रवेश कराने वाले मेरे गुरु भी तो हैं. उनको खीर खिला देता… 


रूप गोस्वामी ने आकर कहा – जीव भूख लगी है तो जीव गोस्वामी उन सूखी रोटीयो को अपने गुरु को दे रहे है.अँधेरा हो रहा है.जीव गोस्वामी की आँखों में अश्रु आ गए. और रुप गोस्वामी जी ने कहा – तू क्यों रो रहा है हम तो साधू हैं ना. जो मिल जाय वही खा लेते हैं. में खा लूंगा.


 श्री जीव गोस्वामी जी ने कहा- नहीं बाबा मेरा मन नहीं मान रहा.आप की यदि कोई पूर्व सूचना होती तो मेरे मन में कुछ था. यह चर्चा हो ही रही थी की कोई अर्द्धरात्रि में दरवाजा खटखटाता है. ज्यो ही दरवाजा खटखटाया है. जीव गोस्वामी जी ने दरवाजा खोला.


 एक किशोरी खड़ी हुई है 8 -10 वर्ष की हाथ में कटोरा है. कहा, बाबा मेरी माँ ने खीर बनाई है और कहा जाओ बाबा को दे आओ. जीव गोस्वामी ने उस खीर के कटोरे को ले जाकर रुप गोस्वामी जी के पास रख दिया. 


बोले बाबा – पाओ…ज्यों ही रूप गोस्वामी जी ने उस खीर को स्पर्श किया… उनका हाथ कांपने लगा. जीव गोस्वामी को लगा बाबा का हाथ कांप रहा है. पूछा – बाबा कोई अपराध बन गया है ? 


रूप गोस्वामी जी ने पूछा-  जीव! आधी रात को यह खीर कौन लाया…?? 


बाबा पड़ोस में एक कन्या है मैं जानता हूं उसे, वो लेके आई है.नहीं जीव इस खीर को मैने जैसे ही चख के देखा और मेरे में ऐसे रोमांच हो गया. नहीं जीव् तू पता कर यह कन्या मुझे मेरे किशोरी जी के होने अहसास दिला रही है.


 नहीं बाबा,  वह कन्या पास की है, मैं जानता हूं उसको. अर्ध रात्रि में दोनों गए है उस के घर और दरवाजा खटखटाया, अंदर से उस कन्या की माँ निकल कर बाहर आई. जीव गोस्वामी जी ने पूछा – आपको कष्ट दिया, परन्तु आपकी लड़की कहां है ? 


उस महिला ने कहा, – का बात है गई बाबा.. आपकी लड़की है कहाँ…??


 वो तो उसके ननिहाल गई है गोवेर्धन, 15 दिन हो गए हैं. रूप गोस्वामी जी तो मूर्छित हो गए. जीव गोस्वामी जी ने पैर पकडे और जैसे तेसे श्रीजी के मंदिर की सीढ़िया चढ़ने लगे.  जैसे एक क्षण में चढ़ जायें.


 लंबे-लंबे पग भरते हुए मंदिर पहुचे. वहां श्री गोसाई जी से कहा-  बाबा! एक बात बताओ आज क्या भोग लगाया था श्रीजी श्यामा प्यारी को? गोसांई जी जानते थे श्री जीव गोस्वामी को, कहा क्या बात है गई बाबा…कहा क्या भोग लगाया था… गोसाई जी ने कहा, आज श्रीजी को खीर का भोग लगाया था. 


रूप गोस्वामी तो श्री राधे श्री राधे कहने लगे, उन्होंने गोसाई जी से कहा – बाबा एक निवेदन और है आप से, यद्दपि यह मंदिर की परंपरा के विरुद्ध है कि एक बार जब श्री जी को शयन करा दिया जाये तो उनकी लीला में जाना अपराध है.


 प्रिया प्रियतम जब विराज रहे हों तो नित्य लीला है उनकी,अपराध है फिर भी आप एक बार यह बता दीजिये की जिस पात्र में भोग लगाया था वह पात्र रखो है के नहीं रखो है…गोसाई जी मंदिर के पट खोलते हैं और देखते हैं की वह पात्र नहीं है वहां पर. गोसांई जी बाहर आते हैं और कहते हैं – बाबा! वह पात्र नहीं है वहां पर ! न जाने का बात है गई है…


रूप गोस्वामी जी ने अपना दुप्पटा हटाया और वह चाँदी का पात्र दिखाया, बाबा यह पात्र तो नहीं है ?


 गोसांई जी ने कहा – हां बाबा यही पात्र तो है… रूप गोस्वामी जी ने कहा- श्री राधा रानी 300 सीढ़ी उतरकर मुझे खीर खिलाने आई, किशोरी पधारी थी, राधारानी आई थी. उस खीर को मुख पर रगड़ लिया सब साधु संतो को बांटते हुए श्री राधे श्री राधे करते हुऐ फिर कई वर्षो तक श्री रूप गोस्वामी जी बरसाना में ही रहे.


 हे करुणा निधान ! इस अधम, पतित-दास को ऐसी पात्रता और ऐसी उत्कंठा अवश्य दे देना कि इन रसिकों के गहन चरित का आस्वादन कर अपने को कृतार्थ कर सकूँ। इनकी पद धूलि की एक कनिका प्राप्त कर सकूँ.


जय जयश्रीराधे...


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