.दर्द गढ़वाली

गजल


दरिया कतरा कतरा दरिया।
दरिया सहरा सहरा दरिया।।


खूं का था वो प्यासा दरिया।
मैं डूबा तो उतरा दरिया।।


उस मंजर को कैसे भूलें।
दरिया में जब डूबा दरिया।।


सबकी प्यास बुझाया करता।
वो था कितना अच्छा दरिया।।


मेरी प्यास से वाकिफ कब था।
वो इक कतरा कतरा दरिया।।


सावन तो सूखा ही निकला।
पर भादों में बरसा दरिया।।


मुझको सावन से क्या लेना।
मेरे अंदर ठहरा दरिया।।


'दर्द' गढ़वाली, देहरादून


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