गुरु गोविंद सिंह जी का बलिदान भूल न जाना

आईऐ 21से 27 दिसंबर तक मनाऐ शहीदी  सप्ताह


गुरू गोविंद सिंह जी के परिवार के बलिदान से ही बचा है हिन्दू धर्म 


शत् शत् नमन् !!(डा0 राजीव कुमार )
आओ आपको क़ुरबानी की एक ऐसी मिसाल से अवगत करवाते हैं जो दुनियां में शायद ही कहीं मिले:


21 दिसंबर
श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने परिवार सहित श्री आनंद पुर साहिब का किला छोड़ा।


22 दिसंबर:


गुरु साहिब अपने दोनों बड़े पुत्रों सहित चमकौर के मैदान में पहुंचे और गुरु साहिब की माता और छोटे दोनों साहिबजादों को गंगू नामक ब्राह्मण जो कभी गुरु घर का रसोइया था उन्हें अपने साथ अपने घर ले आया।


चमकौर की जंग शुरू और दुश्मनों से जूझते हुए गुरु साहिब के बड़े साहिबजादे श्री अजीत सिंह उम्र महज 17 वर्ष और छोटे साहिबजादे श्री जुझार सिंह उम्र महज 14 वर्ष अपने 11 अन्य साथियों सहित मजहब और मुल्क की रक्षा के लिए वीरगति को प्राप्त हुए।


23 दिसंबर 


गुरु साहिब की माता श्री गुजर कौर जी और दोनों छोटे साहिबजादे गंगू ब्राह्मण के द्वारा गहने एवं अन्य सामान चोरी करने के उपरांत तीनों को मुखबरी कर मोरिंडा के चौधरी गनी खान और मनी खान के हाथों ग्रिफ्तार करवा दिया गया और गुरु साहिब को अन्य साथियों की बात मानते हुए चमकौर छोड़ना पड़ा।


24 दिसंबर 


तीनों को सरहिंद पहुंचाया गया और वहां ठंडे बुर्ज में नजरबंद किया गया।


25 और 26 दिसंबर


छोटे साहिबजादों को नवाब वजीर खान की अदालत में पेश किया गया और उन्हें धर्म परिवर्तन करने के लिए लालच दिया गया।


27 दिसंबर


साहिबजादा जोरावर सिंह और साहिबजादा फतेह सिंह  को तमाम जुल्म ओ जब्र उपरांत जिंदा दीवार में चीनने उपरांत जिबह (गला रेत) कर शहीद किया गया और खबर सुनते ही माता गुजर कौर ने अपने साँस त्याग दिए।


कुरबानी की अनोखी और शायद दुनिया की इकलौती मिसाल को? 
इस शहीदी सप्ताह से सभी को अवगत करवाने हेतु अधिकाधिक शेयर करें ताकि लोगों को सिख धर्म की बुनियाद का पता चल सके।


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