कविता


  • प्रेरणादायक कविता 
    *कहाँ पर बोलना है*
    *और कहाँ पर बोल जाते हैं।*
    *जहाँ खामोश रहना है*
    *वहाँ मुँह खोल जाते हैं।।*


*कटा जब शीश सैनिक का*
*तो हम खामोश रहते हैं।*
*कटा एक सीन पिक्चर का*
*तो सारे बोल जाते हैं।।* 


*नयी नस्लों के ये बच्चे*
*जमाने भर की सुनते हैं।*
*मगर माँ बाप कुछ बोले*
*तो बच्चे बोल जाते हैं।।*


*बहुत ऊँची दुकानों में*
*कटाते जेब सब अपनी।*
*मगर मज़दूर माँगेगा*
*तो सिक्के बोल जाते हैं।।*


*अगर मखमल करे गलती*
*तो कोई कुछ नहीँ कहता।*
*फटी चादर की गलती हो*
*तो सारे बोल जाते हैं।।*


*हवाओं की तबाही को*
*सभी चुपचाप सहते हैं।*
*च़रागों से हुई गलती*
*तो सारे बोल जाते हैं।।*


*बनाते फिरते हैं रिश्ते*
*जमाने भर से अक्सर हम*
*मगर घर में जरूरत हो*
*तो रिश्ते भूल जाते हैं।।*
 
*कहाँ पर बोलना है*
*और कहाँ पर बोल जाते हैं*
*जहाँ खामोश रहना है*
*वहाँ मुँह खोल जाते हैं।।*


       ✍अज्ञात✍


       🙏🙏🙏🙏🙏


यह कविता बार बार पढ़े।
आपको हर बार एक नया अहसास होगा


No comments:

Post a Comment

Featured Post

भारत विकास परिषद ने निखिल वर्मा को सौंपा प्रांतीय संगठन सचिव का दायित्व

* भारत विकास परिषद में निखिल वर्मा बने प्रांतीय संगठन सचिव*                   हरिद्वार 21 अप्रैल  भारत विकास परिषद की पंचपुरी श...