कविता

 


 


कविता (रूपायण से सभार)


कैसे कहूं अब जाओ तुम
हिम्मत नहीं विदा कर पाऊं
रोकू कैसे अधिकार नहीं
 हर पल हम साथ रहे 
यह भाग्य को स्वीकार नहीं
क्यों मिलने पर खुशी 
क्यों बिछड़ने पर गम 
जिंदगी की यह अजीब पहेली 
इसे और मत उलझाओं तुम 
कैसे कहूं अब जाओ तुम 


क्या बताऊं कि तेरा दूर जाना भी है पास आना
 बड़प्पन है तेरा गैरो को भी यू गले लगाना
 मानवता के इस अध्याय को कुछ आगे और बढ़ाओ तुम 
कैसे कहूं अब जाओ तुम
 फूट पड़ता है समंदर 
देख कर तुझे पास में
 सोच न रोएगा कितना
 तुम जाओगे जब परदेस में 
चले जाने की बातें करके
 मुझे इतना मत रुलाओ तुम
 कैसे कहूं अब जाओ तुम जिम्मेदारी है तुमको सोंपी 
अपना कर्तव्य निभाओ तुम
 भावनाओं के मंजर में फंसकर मत नाहक देर लगाओ तुम
 मत रुको अब जाओ तुम
 अब जाओ तुम अब जाओ तुम


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