मुशायरा


  • मौला मुझे इत्र सा महकने का हुनर दे
    कवि कुंभ और बीइंग वूमन की ओर से प्रसिद्ध शायरा परवीन शाकिर की याद में मुशायरा


देहरादूनः 'मौला मुझे इत्र सा महकने का हुनर दे। जिस सिम्त भी जाऊं खुशबू सा बिखर जाऊं।।' दून की वरिष्ठ शायरा रंजीता फलक के इस शेर ने महफिल लूट ली। मौका था कवि कुंभ और बीइंग वूमन की तरफ से 'रंग-ए-परवीन शाकिर' के उन्वान से आयोजित मुशायरे का। प्रख्यात शायरा परवीन शाकिर की याद में तस्मिया अकादमी में आयोजित इस मुशायरे में स्थानीय शायरों के अलावा अंतरराष्ट्रीय स्तर की महिला शायरात ने भी हिस्सा लिया। दो सत्रों में आयोजित इस कार्यक्रम में रंजीता फलक की पुस्तक का विमोचन भी किया गया, जिसमें प्रख्यात शायरों और कवियों के साक्षात्कार लिए गए हैं।
कार्यक्रम के पहले हिस्से में परवीन शाकिर की शायरी से लोगों को रुबरु कराया गया और इसके बाद शायरों ने अपने कलाम पढे। दिल्ली से आई अंतराष्ट्रीय शायरा राशिदा बाकी जिया ने गालिब के रदीफ पर गजल 'जब टूटा तमन्नाओं का शीशा मेरे आगे। मेरा ही सरापा था जो बिखरा मेरे आगे' सुनाकर महफिल का रंग ही बदल दिया। इससे पहले देश-विदेश में अपने कलाम से धूम मचाने वाली अंतराष्ट्रीय शायरा अलीना इतरत ने जब ये शेर ' अभी तो चाक पे जारी है रक्श मिट्टी का। अभी कुम्हार की नीयत बदल भी सकती है।' पढ़ा तो सारी महफिल झूम उठी। अलीना और हया ने अपने कुछ और कलाम सुनाकर मुशायरे को उरुज पर पहुंचाया।
इससे पहले, कानपुर से आए शायर पुष्पेंद्र पुष्प के इस शेर 'खूब  रोका ठगा खिजां ने क्या करें। हम बहारों के कहे में आ गए। ने भी खूब दाद बटोरी। गजाला खान का शेर  ' जिंदगी मांगती रहती है सांसों का हिसाब। कोई आराम नहीं मौत के आराम के बाद ' और  जसकिरन चोपड़ा ने  ' कुछ लोग अब यहां के सुल्तान हो गए। उन्हीं के हवाले ये मेरा शहर हो गया '  शेर भी खूब पसंद किया गया।  दर्द गढ़वाली के चार मिसरों ' मुहब्बत का पुजारी हूं तिजारत कर नहीं सकता। किसी का दिल दुखे जिससे शरारत कर नहीं सकता।। उसूलों पर मैं चलता हूं अमीरे-शहर से कह दो। अना वाला हूं मैं उसकी इबादत क र नहीं सकता।।' को भी पसंद किया गया।
इसके अलावा, मीरा नवेली के इस शेर 'घूंट भर चांदनी पी थी कभी मुहब्बत की। हमसे न पूछिए चांद का स्वाद कैसा है।।'  को भी दाद से नवाजा गया। ममता वेद के शेर 'दर्द ए दिल तब भी था लेकिन तुम कभी न रोए। आज अश्कों का समंदर क्यों बहाया तुमने।। और विवेक बादल बाजपुरी के शेर 'बेटियों से गुरेज है जिनको। उनके आंगन खुशी को तरसेंगे।।' भी पसंद किए गए। इससे पहले उत्तराखंड हिंदी साहित्य समिति के अध्यक्ष डा. रामविनय सिंह ने पुस्तक की समीक्षा की। रंजीता फलक के संचालन में नीलमप्रभा वर्मा, नदीम बर्नी, शादाब अली, रईस फिगार, परवेज गाजी, शौहर जलालाबादी, कविता बिष्ट, निकी पुष्कर आदि ने भी कलाम पढे। 
शहर के प्रसिद्ध उद्यमी डा. एस. फारुख और आइएएस अधिकारी इंदू कुमार पांडे ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की। इस मौके पर आरके बख्शी, एमएल सकलानी, रजनीश त्रिवेदी, गौरव कुमार, विशंभरनाथ बजाज आदि मौजूद थे।


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