राधामणि


  • "केरल की राधामणि नायार को हृदय से प्रणाम 


जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी " ऐसा राम ने कहा था, अर्थात माता एवं मातृभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है l 


लेकिन पति और कर्मभूमि भी तो स्वर्ग से ज्यादा प्रिय होती है l 


ऐसा साबित किया श्रीमति राधामणि नायर कोठियाल ने l 


आज से 35 वर्ष पूर्व केरल की एक युवती आई थी पौड़ी गढ़वाल के भेंटी ग्रामीण क्षेत्र में,  नर्स के रूप में सेवा करने l माता-पिता, भाई -बहनों,  सखी -मित्रों से दूर एक ऐसे स्थान पर, जहाँ की भाषा -बोली, हवा -पानी, सब तो अनजान था l तब यहाँ न बिजली थी, न फोन, न सड़क -मोटर  और न ही अन्य l  आधुनिक सुविधाएं l लेकिन मनुष्यता का इतिहास तो आधुनिक सुविधाओं के मुकाबले अत्यंत ही पुराना है, और इतना ही पुराना है प्रेम का इतिहास भी l 


राधामणि को यह क्षेत्र भा गया,  यहाँ के लोग,  हवा -पानी उनके  दोस्त बन गए l और उन्हें प्यार हो गया यहीं के एक स्थानीय युवक से भी l प्रेम हुआ और विवाह भी, आगे फिर फलता फूलता परिवार भी l प्रेम का अंकुर सार्थक भी तो तभी होता है ज़ब वह परिवार के रूप में पल्लवित -पुष्पित हो वन -उपवन बन जाए l जो जीना सिखाये.. जीवन महकाये वही तो  प्रेम है जी l 


31 दिसंबर को राधामणि जी राजकीय सेवा से निवृत हो रहीं हैं l पिछले 35 वर्षों से वे यहाँ की महिलाओं की सहेली -दीदी -भाभी -ननद -मौसी -दादी हैं l आगे भी रहेंगी l 


मलयालम राधामणि जी की मातृभाषा है ही,  अंग्रेजी, हिंदी और गढ़वाली भी बहुत सुंदर बोलती हैं l 


आज उनकी विदाई के अवसर एक समारोह आयोजित हुआ l 


श्रीमति राधामणि जी को विद्यालय परिवार की तरफ से हार्दिक मंगलकामनाएं l 


न  जन्मभूमि केवलं स्वर्गादपि गरीयसी... कर्मभूमिरपि स्वर्गादपि गरीयसी...


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