गजल (हमे शौक है फूलों से जख्म खाने का)
गुलों को शौक है खारों में घर बसाने का।
हमें भी शौक है फूलों से जख्म खाने का।।
सुना है आज वो आएंगे देखने हमको।
चलो है वक्त ये फूलों से घर सजाने का।।
यहां तो लोग सब दिल पत्थर का रखते हैं।
नहीं मतलब यहां कोई आंसू बहाने का।।
चले आओ नई इक दुनिया हम बसाते हैं।
नहीं कोई भरोसा जुल्मी इस जमाने का।।
जरा सी देर में अब छत पे चांद आएगा।
चलेगा दौर सारी शब पीने-पिलाने का।।
दर्द गढ़वाली, देहरादून
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