- 👉 *तेरा विश्वास शक्ति बने, याचना नहीं*
*हे प्रभो! मेरी केवल एक ही कामना है कि मैं संकटों से डर कर भागूं नहीं, उनका सामना करूं।* इसलिए मेरी यह प्रार्थना नहीं है कि संकट के समय तुम मेरी रक्षा करो बल्कि मैं तो इतना ही चाहता हूँ कि तुम उनसे जूझने का बल दो। मैं यह भी नहीं चाहता कि जब दुःख सन्ताप से मेरा चित्त व्यथित हो जाय तब तुम मुझे सान्त्वना दो। *मैं अपनी अञ्जलि के भाव सुमन तुम्हारे चरणों में अर्पित करते हुए इतना ही माँगता हूँ कि तुम मुझे अपने दुःखों पर विजय प्राप्त करने की शक्ति दो।*
जब किसी कष्टप्रद और संकट की घड़ी में मुझे कहीं से कोई सहायता न मिले तो मैं हिम्मत न हारूं। *किसी और स्रोत से सहायता की याचना न करूँ, न उन घड़ियों में मेरा मनोबल क्षीण होने पाये। हे प्रभो!* मुझे ऐसी दृढ़ता और शक्ति देना जिससे कि मैं कठिन से कठिन घड़ियों में भी−संकटों और समस्याओं के सामने भी दृढ़ रह सकूँ और तुम्हें हर घड़ी अपने साथ देखते हुए उन्हें हँसी खेल समझ कर अपने चित्त को हल्का रखूँ। मैं बस यही चाहता हूँ।
*चाहे जैसी ही प्रतिकूलताएँ हों, व्यवहार में मुझे कितनी ही हानि क्यों न उठानी पड़े इसकी मुझे जरा भी परवाह नहीं है।* लेकिन प्रभु मुझे इतना कमजोर मत होने देना कि मैं आसन्न संकटों को देखकर *हिम्मत हार बैठूँ और यह रोने बैठ जाऊँ कि अब क्या करूँ मेरा सर्वस्व छिन गया।*
प्रभु तुम्हारा और केवल तुम्हारा विश्वास ग्रहण कर लोगों ने अकिंचन अवस्था में रहते हुए भी इतिहास की श्रेष्ठ उपलब्धियाँ प्राप्त की हैं। *मैं इतना ही चाहता हूँ कि तुम्हारा विश्वास मेरे लिए शक्ति बने याचना नहीं, सम्बल बने−क्षीणता नहीं। बस इतनी ही कृपा करना।*
*रवींद्रनाथ टैगोर*
📖 *अखण्ड ज्योति मार्च 1978 पृष्ठ 1*
No comments:
Post a Comment