संत वाणी

अपना मूल्य जानिए 


महंत प्रेम दास जी महाराज कोठारी श्री पंचायती अखाड़ा बडा उदासीन कनखल हरिद्वार 


*रेलवे स्टेशन के बाहर सड़क के किनारे कटोरा लिए एक भिखारी लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए अपने कटोरे में पड़े सिक्कों को हिलाता रहता और साथ-साथ यह गाना भी गाता जाता -*
*गरीबों की सुनो वो तुम्हारी सुनेगा -२*
*तुम एक पैसा दोगे वो दस लाख देगा*
*गरीबों की सुनो ..."*


*कटोरे से पैदा हुई ध्वनि व उसके गीत को सुन आते-जाते मुसाफ़िर उसके कटोरे में सिक्के डाल देते।*


*सुना था, इस भिखारी के पुरखे शहर के नामचीन लोग थे! इसकी ऐसी हालत कैसे हुई यह अपने आप में शायद एक अलग कहानी हो!*


*आज भी हमेशा की तरह वह अपने कटोरे में पड़ी चिल्हर को हिलाते हुए, 'ग़रीबों की सुनो वो तुम्हारी सुनेगा....' वाला गीत गा रहा था।*


*तभी एक व्यक्ति भिखारी के पास आकर एक पल के लिए ठिठकर रुक गया। उसकी नजर भिखारी के कटोरे पर थी फिर उसने अपनी जेब में हाथ डाल कुछ सौ-सौ के नोट गिने। भिखारी उस व्यक्ति को इतने सारे नोट गिनता देख उसकी तरफ टकटकी बाँधे देख रहा था कि शायद कोई एक छोटा नोट उसे भी मिल जाए।* 


*तभी उस व्यक्ति ने भिखारी को संबोधित करते हुए कहा, "अगर मैं तुम्हें हजार रुपये दूं तो क्या तुम अपना कटोरा मुझे दे सकते हो?"*


*भिखारी अभी सोच ही रहा था कि वह व्यक्ति बोला, "अच्छा चलो मैं तुम्हें दो हजार देता हूँ!"*


*भिखारी ने अचंभित होते हुए अपना कटोरा उस व्यक्ति की ओर बढ़ा दिया और वह व्यक्ति कुछ सौ-सौ के नोट उस भिखारी को थमा उससे कटोरा ले अपने बैग में डाल तेज कदमों से स्टेशन की ओर बढ़ गया।*


*इधर भिखारी भी अपना गीत बंद कर वहां से ये सोच कर अपने रास्ते हो लिया कि कहीं वह व्यक्ति अपना मन न बदल ले और हाथ आया इतना पैसा हाथ से निकल जाए।*
*और भिखारी ने इसी डर से फैसला लिया अब वह इस स्टेशन पर कभी नहीं आएगा - कहीं और जाएगा!*


*रास्ते भर भिखारी खुश होकर  यही सोच रहा था कि 'लोग हर रोज आकर सिक्के डालते थे,*
*पर आज दौ हजार में कटोरा! वह कटोरे का क्या करेगा?' भिखारी सोच रहा था?*


*उधर दो हजार में कटोरा खरीदने वाला व्यक्ति अब रेलगाड़ी में सवार हो चुका था। उसने धीरे से बैग की ज़िप्प खोल कर कटोरा टटोला - सब सुरक्षित था। वह पीछे छुटते नगर और स्टेशन को देख रहा था। उसने एक बार फिर बैग में हाथ डाल कटोरे का वजन भांपने की कोशिश की। कम से कम आधा किलो का तो होगा!*


*उसने जीवन भर धातुओं का काम किया था। भिखारी के हाथ में वह कटोरा देख वह हैरान हो गया था। सोने का कटोरा! .....और लोग डाल रहे थे उसमें एक-दो के सिक्के!*


*उसकी सुनार वाली आँख ने धूल में सने उस कटोरे को पहचान लिया था। ना भिखारी को उसकी कीमत पता थी और न सिक्का डालने वालों को पर वह तो जौहरी था, सुनार था।*


*भिखारी दो हजार में खुश था और जौहरी कटोरा पाकर! उसने लाखों की कीमत का कटोरा दो हजार में जो खरीद लिया था।*


 *इसी तरह हम भी अपने अनमोल इंसानी जामे की उपयोगिता भूले बैठे है और उसे एक सामान्य कटोरे की भाँति समझ कर खटका कर कौड़ियां इक्कट्ठे करने में लगे हुए हैं।*


*ये इंसानी जन्म ८४ लाख योनियों के बाद मिला है*
*इसे ऐसे ही ना गवाएं*


*हर समय परमात्मा का नाम सुमीरण करके अपना जीवन सफल बनाए !*


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