स्वामी विवेकानन्द जी की स्मृतियो को समेट कन्याकुमारी(डा0 राजीव)
कन्याकुमारी की वह चट्टान जिस पर सन् 1892 की 25, 26 और 27 दिसम्बर को माँ के श्रीचरणों में संन्यासी ने ध्यान किया। भारतभूमि का अतीत, वर्तमान और भविष्य संन्यासी के चित्त पर चित्रपट की तरह चल पड़ा, और उनको उद्घाटित हुआ भारत की दीनता का मूल कारण और उसका समाधान। ईश्वर द्वारा निर्दिष्ट ध्येय का उन्हें साक्षात्कार हुआ। चारों और समुद्र की उत्ताल प्रचण्ड तरंगों के बीच भारत की पीड़ा से क्लांत संन्यासी का व्यग्र मन शांत हो गया। वह थे स्वामी विवेकानंद और स्थान था विवेकानंद शिला, कन्याकुमारी। दक्षिणी छोर पर उन्मुक्त घोषणा करती वह शिला, “भारत हिन्दूओं का है।”, चार धामों के बाद हिन्दू जनमानस का पांचवा धाम बन गयी है। अपने में समेटे हुए हिन्दूओं की विजय का इतिहास, विधर्मियों की धूर्तता का चित्र और सनातन धर्म के संघर्ष की कहानी।
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