गजल
कहीं ज्यादा कहीं कम जिंदगी का दुख।
बताए कोई क्या बेचारगी का दुख।।
सुलाया रात जिसने बच्चों को भूखा।
उसी से पूछिए तुम मुफ्लिसी का दुख।।
घरों के दरमियां घर जल रहे हों जब।
दिया किसको बताए रोशनी का दुख।।
घिरी है दुर्योधनों दुःशासनों में फिर।
वही है आज भी तो द्रोपदी का दुख।।
तकब्बुर की अदा की पासदारी है।
यही तो है असल में आजिजी का दुख।।
लिखें हो शेर जिसने रतजगा करके।
समझता है वही हर आदमी का दुख।।
हुआ है 'दर्द' अपना लादवा यारों।
कहें किससे मसीहाईगरी का दुख।।
दर्द गढ़वाली, देहरादून
09455485094
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