गजल
ये पुरानी बहुत कहानी है।
इश्क का रोग खानदानी है।।
खून का भी यकीं नहीं है अब।
आजकल खून भी तो पानी है।।
फूल को खार से बचाना है।
खार से भी हमें निभानी है।।
तोड़ना है मुझे गुमां उसका।
इक नई राह भी बनानी है।।
हर कदम मौत का बसेरा है।
और खतरे में जिंदगानी है।।
दर्द गढ़वाली, देहरादून
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