- नेत्रहीनो के जीवन में ज्ञान का प्रकाश फैलाने वाले महान शिक्षाविद लुईब्रेल की जयंती पर शत शत नमन
लुई ब्रेल फ्रांस के शिक्षाविद और नेत्रहीनो के मसीहा थे जिन्होंने नेत्रहीनो के पढने लिखने के लिए विशेष लिपि का आविष्कार किया लुई ब्रेल का जन्म फ्रांस के कुप्रे गाँव में 4 जनवरी 1809 में हुआ था जन्म के 8वर्ष के भीतर ही नेत्रो की रोशनी खो चुके लुई ब्रेल ने छः बिन्दुओं पर आधारित लिपि का अविष्कार किया लेकिन लुई ब्रेल की इस खोज को सम्मान पाने मे 100 वर्ष लग गये, 6जनवरी 1852 को नेत्रहीनो के जीवन में शिक्षा के लिए ब्रेललिपि का आविष्कार कर दुनिया से विदा हो गये। फ्रांस की सरकार ने उनकी मृत्यु के बाद उनके आविष्कार को सम्मान दिया। भारत में नेत्रहीनो के लिए सरकारी और गैर सरकारी क्षेत्र में बड़े स्तर पर कार्य हुए चित्रकुट उ0प्र0 में जँहा जगद्गुरू रामभद्राचार्य जी महाराज ने विकलांग विश्व विद्यालय स्थापित किया, देहरादून में भारत सरकार ने नेत्रहीनो के लिए स्कूल की स्थापना की वही तीर्थ नगरी हरिद्वार में नेत्रहीन संत स्वामी अजरानंद महाराज ने अंधविद्धालय स्थापित किया जो वर्तमान में स्वामी अजरानंद अंधविद्धालय के नाम से संचालित हो रहा है इस अंधविद्धालय को आधुनिक बनाने का श्रेय एक और नेत्रहीन संत महामंडलेश्वर स्वामी सच्चिदान्नद जी को जाता है, जिनहो ने अपने कार्यकाल में स्वामी अजरानंद अंधविद्धालय को हाई स्कूल बनाया और विद्यालय परिसर में ही ब्रेल प्रेस, कमप्यूटर आदि लगवा कर नेत्रहीनो के लिए विद्यालय में ही ब्रेल किताबो, साहित्य आदि की व्यवस्था की। वर्तमान मंहत स्वामी स्वयंमानंद महाराज ने बताया कि लम्बे समय से स्वामी अजरानंद अंधविद्धालय हाई स्कूल में सामान्य बच्चों को भी निःशुल्क आधुनिक शिक्षा दी जा रही हैं। उन्हों ने कहा कि हमारे आदर्श लुई ब्रेल, स्वामी अजरानंद जी महाराज और हमारे गुरु देव ब्रह्मलीन स्वामी सच्चिदान्नद जी महाराज है जिनहो ने स्वंय नेत्रहीन होते हुए भी नेत्रहीनो के जीवन में शिक्षा के माध्यम से ज्ञान का प्रकाश फैलाया,साथ ही विद्यालय में नेत्रहीन दिव्यांग छात्रों को आत्म निर्भर बनाने के लिए संगीत, हस्तकला प्रशिक्षण की व्यवस्था की। लुई ब्रेल जयंती पर हम अपने गुरुजनो को भी स्मरण करते है और उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हैं।(संजय वर्मा)
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