प्रकृति और परमात्मा

प्रकृति परमात्मा का स्वरूप है 


आज पहाड़ी वादियों में प्रकृति से बात करते  हुए अनुभव हुआ अगर परमात्मा  हमारे पिता हैं तो प्रकृति हमारी माँ हैंl दुनियाँ में जब बच्चे का जनम होता हैं तो सबसे पहले उसका मिलन उसकी माँ से होता हैं ,फिर माँ उसे अपने पिता से परिचित कराती हैं  .उसी तरह जैसे जैसे हम प्रकृति के समीप होते जाते हैं ,हम परमपिता के करीब भी होते जाते हैंlसाधक जब परमपिता की तरफ अपने कदम बढ़ता हैं तो सबसे पहले वह प्रकृति के करीब आता हैं .चाँद ,तारे ,हवा ,धूप, पेड़ ,पौधे सभी उसके मित्र और गुरु बन जाते हैं .सभी उसकी इस अभूतपूर्व यात्रा के सहायक बन जाते हैं. भगवान  में मिलने से पहले भीतर भगवत्ता आनी जरुरी हैऔर यह भगवत्ता तुम्हें कोई और नहीं सिखाता बल्कि प्रकृति खुद सिखाती हैं -
भ - भूमि तुम्हें भार को धरना सिखाती हैं।गंभीर बनो , भीतर धैर्य धरो ।
ग -  गगन तुम्हें विस्तृत होना सिखाता हैं ,विशाल बनने की सीख देता हैं .
व  -वायु तुम्हें बहना सिखाता हैं ।चाहे कोई भी परिस्थिति हो तुम सदैव हल्के रहो, बहते रहो। 
आ   -अग्नि हर बुरे भाव ,विचार और बीती हुए बातों को भुला या जला  देने की सीख देता हैं .अग्नि का गुण हैं की उसकी लौ सदैव ऊपर की तरफ ही जलती हैं .यह लौ तुम्हें हर पल परमपिता की तरफ बढ़ने की सीख देती हैं .
न   - पानी हर परिस्थिति में बहता रहता है समुद्र से मिलने के लिए ।उसके रास्ते में बड़े बड़े पत्थर आये या नीचे पथरीली जमीन हो ,वह फ़िक्र नहीं करता बस बहता जाता हैं .यानि एक साधक के जीवन में भी उसकी परिस्थितियां कठिन होंगी ही ..पथरीली होंगी ही पर उसे बहते जाना हैं .
प्रकृति के बच्चे भी कुछ कम  नहीं सीखते . कई बुद्धो ने यह बात हमें सिखाई  हैं .बड़े ही प्रेम से सिखाई हैं .
रहीम कहते हैं -तरुवर फल नहिं खात है, सरुवर पियहिं न पान।
कहि रहीम पर काज हित, संपति संचहि सुजान।
अर्थ: कविवर रहीम कहते हैं कि जिस तरह  पेड़ कभी स्वयं अपने फल नहीं खाते और तालाब कभी अपना पानी नहीं पीते उसी तरह सज्जनलोग दूसरे के हित के लिये संपत्ति का संचय करते हैं।


कबीर कहते हैं - बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर ।   पंथी को छाया नहीं फल लगे अति दूर ।।
अर्थ - संत कबीर कहते हैं की सिर्फ बड़े होने से कुछ नहीं होता .जैसे खजूर का पेड़ इतना बड़ा होता हैं पर  वह किसी न तो किसी यात्री को फल देता हैं न ही छाया देता है।
परमात्मा की बात छोड़ो आज प्रकृति की बात करते हैं .तुम उसे रोज़ देख रहे हो ,महसूस कर रहे हो ,सुन रहे हो बस उसे समझ नहीं पा रहे हो .जिस दिन तुम प्रकृति को समझने लगोगे तुम्हे तुम्हारे अनगिनत उलझनों का जवाब मिल जायेगा।


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