शुभ हिंदी दिवस
पैदा होते ही शायद मैं हिंदी में ही रोयी थी
जब मुट्ठी बंद किए अपने मीठे सपनों में खोई थी ।
हिंदी में ही मां ने मुझको वो पहली लोरी सुनाई थी
फिर पुराने हिंदी गाने को वो रसोई में खड़ी गुनगुनाई थी।
आरती , पूजा , कथा ,कहानी , बचपन में सुनी सुनाई थी
वो हिंदी भाषा ही तो थी जो सबसे पहले मुख से लगाई थी
हिंदी फिल्मों के गानों पर कितनी ही धूम मचाई थी
लता मंगेशकर , आशा भोंसले की धुनों पर मैं भी तो खिलखिलाई थी ।
हाँ हिंदी में ही अक्सर मैंने सबकी डांट भी खाई थी।
डांट में क्या बोला गया है,एक एक बात तीर सी टकराई थी
जब गणित से डर लगता था और बाबाजी ने क्लास लगाई थी
तब "कल हिंदी का टेस्ट है" बोलकर हिंदी ने ही जान बचाई थी।
यूं तो अंग्रेजी में भी, मेरे अच्छे नंबर आते थे
मगर हिंदी में तो हम बिना पढ़े ही परीक्षा देने जाते थे ।
गालियां , गप्पें और खुसुर पुसुर ,सब हिंदी में ही जंचती हैं
और चुगली की तो बात ही क्या,गोलगप्पों सा सुख देती हैं।
सुख की, दुख की, प्यार की, हर बात हिंदी में ही फबती है
मन का हर भाव जताती है बस इसी लिए हिंदी अच्छी लगती है।
हिंदी का एक एक शब्द मुझे रेशमी दुशाला लगता है
अंग्रेजी "जबरन थोपा हुआ " शाल पैबंद वाला लगता है।
दुनिया की सभी बोलियां और भाषाएं यों तो प्यारी हैं
मगर हिंदी की बात ही अलग है , ये सारे जग से न्यारी है।
सभी हिंदी भाषियों को हिंदी दिवस की बधाई।
सर्वाधिकार सुरक्षित
मनीषा गौड़ वर्मा।
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