विटठल, विटठल

 


 👉 "कालू चमार" भक्ति की एक अनूठी कहानी 


हरि को भजे सो हरि का होई ...
( श्रीकबीर दास )


वो चमार जाति का था...."कालू चमार" । .तो क्या हुआ.....प्रेम और भक्ति कोई जात देखकर तो आती नही  ।  महाराष्ट्र का था  ये   ।


महाराष्ट्र में पंढरपुर है.....भगवान बिट्ठल नाथ के दर्शन हैं  वहाँ ।


तो  ये  मन्दिर के बाहर ही खेला करता था  जब छोटा था ।


मन्दिर का प्रसाद खा कर ही ये बड़ा हुआ था..........


लोग "बिठ्ठल बिठ्ठल" करके नाचते.....तो ये भी नाचता  ।


पुजारी के बालकों से  इसकी दोस्ती थी ..............छुप छूप के ये  खेलता था ...........ताकि    इनके पिता जी  इनको पीटे नहीं  ।


चमार के साथ खेल रहा है !.........दो बार तो  पिट चुके हैं  ये पुजारी के बच्चे......तब से सावधान रहता है .......अपनें मित्रों से कहता भी है .....मेरी माँ और मेरे बापू तो मुझे नही पीटते ?     कि तू क्यों पण्डित के साथ खेल रहा है .....कहकर  ........फिर  मेरे साथ  खेलनें पर  तेरे बापू ही  .....।


अरे ! छोड़ ना ...........ये बड़े लोग  भी पता नही   ............


बालकों को क्या   जाति और पांत से .......!


पता है   मेरा आज जन्म दिन है.....और आज के दिन  मै छप्पन भोग ,  बिट्ठल भगवान को भोग लगाउँगा. ....पुजारी के बालक नें कहा था  ।


  अच्छा !      कालू चमार  सोच में पड़ गया  ।


क्या   बिठ्ठल भगवान खाते हैं  ? 


   कालू  की मासूमियत से निकला ये प्रश्न था   ।


  खाते हैं  !   


   पुजारिओं के  सारे बालक यहीं खेल रहे थे....उनमें से एक नें कहा  था........"खाते हैं"  ।


नाक से सूँघते हैं ........मुँह से नही खाते  , भगवान लोग ऐसे ही खाते हैं ........दूसरे बालक नें कहा  था ।


कालू सुनता रहा ....................और उदास सा भी हो गया  ।


अरे !  तू चिन्ता मत कर   कालू !  मै तेरे लिए  छप्पन भोग  चुराकर ले आऊंगा..........फिर तू और हम  बैठकर खाएंगे  ।


पर  कालू तो किसी और धुन में था ...................।


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माँ ! माँ !     बता ना   मेरा जन्म दिन कब का है  ? 


कालू  अपनें घर चला गया था .........8  वर्ष का ही तो था ये कालू ।


माँ की गोद में बैठ कर आज पूछ रहा था  ।


पर कालू !    तू   आज परेशान सा लग रहा है  क्या बात है  ?   बेटा भूख लगी क्या  ?    माँ नें पूछा था  ।


नही माँ !    बता ना  मेरा जन्म दिन कब है  ? 


तेरा जन्म दिन ?      माँ सोचनें लगी ...........कालू अपनी माँ के बालों को खींचनें लगा था ............अरे ! अरे ! बता रही हूँ .....बता रही हूँ  ।


देख !   तेरा जन्म दिन है ............दो महिनें बाद  ।


कार्तिक  शुक्ल एकादशी को ...........इतना कहकर  माँ नें  फिर भेज दिया .........कालू  उछलता हुआ  चला गया ........दूर जाकर हिसाब लगानें लगा ......दो महिनें  !        मै भी भोग लगाउँगा  ............अपनें जन्म दिन में,  मै भी  बिठ्ठल भगवान को भोग लगाउँगा  ।


देखना  मेरा भोग भगवान नाक से खायेगें ............वो बच्चा बहुत खुश था  .....उसनें दिन की गिनती  भी शुरू कर दी थी  ।


समय बीतनें में भला देरी लगा करती है  क्या  ?


समय बीत गया  ।


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आज  नहाया है कालू ......उसकी माँ नें उसे नहलाया है  ।


कपड़े भी ठीक ठाक ही पहनें हैं इसनें  ।


दो आना  दिए थे माँ नें ............दो आना  जन्म दिन पर  इसके बापू नें भी दे दिए ............चार आना हो गए  ।


दो केला  ........हाँ .......केला  भोग लगाउँगा   आज .......मेरा भी जन्म दिन है ........मै भी  बिठ्ठल भगवान को भोग लगाकर ही रहूंगा ।


सुबह का समय था ..........मन्दिर खुल चुके थे ........दर्शनार्थी  बिठ्ठल भगवान के दर्शन करके   जा रहे थे .......कुछेक ही लोग थे  जो दर्शन करनें आरहे थे ..............मन्दिर खाली ही था  आज ।


कालू नें  चार आने से   दो केले खरीदे   ।


एक खिलाऊंगा ........ये केला खिलाऊंगा  ।


बस ख़ुशी ख़ुशी   आनन्द से झूमते हुए वो जा रहा था ...............तभी ...


अरे !  ये कहाँ आगया  ?       ये तो     चमार का बेटा है  ! 


उसी गांव के ही तो हैं सब लोग .......पहचान लिया कालू  को  ।


और  न कालू की ये इच्छा ही थी   कि  न पहचानें  ।


बच्चा आगया होगा ........मन्दिर में  कोई गेंद आगयी होगी .........या खेलते हुए बालक आगया ...जो भी देखता कालू को ....बस वो यही सोचता  था....वैसे भी मन्दिर परिसर आने में तो कोई दिक्कत थी नही  ।


पर ये क्या !   कालू  तो मन्दिर के भी भीतर  चला गया.......कोई रोकनें वाला भी नही था .......क्यों की दर्शनार्थी के न होनें से पुजारी जी भी इधर उधर चले गए थे  ।


कालू गर्भ गृह में ही  घुस गया  ।


और  एक केला छीलकर    भगवान बिठ्ठल के नाक में सुँघानें लगा ।


ऊपर चढ़ गया था .............छोटा तो था ही .......बिठ्ठल के विग्रह के चरणों में ही अपनें पैर रखा हुआ था कालू नें  ।


मेरा आज जन्म दिन है ...........मै छप्पन भोग नही लगा सकता ....क्यों की  मेरी माँ कहती है .......हम लोग गरीब हैं ........।


इसलिये मै   तुम्हारे लिए केला लाया हूँ ......खा लो  ।


सुनो !  मुझे  दो आना माँ नें दिए थे....मेरा जन्म दिन है ना आज ...और बापू नें  दो आना .....मै चार आने के ही केला ले आया ......सुनो !  माँ से मत कहना ......और बापू से भी नही ............नही तो मुझे मार पड़ेगी ।


अब खाओ .............विग्रह  में ही चढ़ गया है कालू .......और  केले को लेकर ...........खिला रहा है  ।


तभी .............कुछ पुजारियों नें देख लिया  ।


ओह !      देखो ! देखो !    ये लड़का तो  भगवान के ऊपर चढ़ गया रे ।


ए लड़के !    रुक  अभी बताता हूँ तुझे  ।


कालू चिल्लाया.....बिठ्ठल जल्दी खाओ  ना .......देखो लोग आरहे हैं ।


पर .......जैसे ही पुजारी लोग पास में आये .......


हे भगवान !  ये तो मंगू चमार का बेटा है ...............कालू ।


कालू  नें देखा   ये लोग आगये हैं ..........


आज मेरा जन्म दिन है ना ........तो  मै बिठ्ठल को  केले खिलानें आया था ............8 वर्ष का बालक कालू बोला ।


पर  ये  पुजारी लोग  ऐसे ही छोड़ देते क्या ?   


नही ....मत मारो मुझे .........मत मारो ............आह  !   लग रही है  ।


"चमार के !    तेरी हिम्मत कैसे हुयी  हमारे भगवान को छूनें की"


एक पुजारी नें फटकारते  हुए कालू को कह दिया था  ।


क्या !     "हमारे भगवान" ? 


क्या तुम मेरे नही हो  बिठ्ठल  ?      


आह ! दर्द से कराह उठा था  वो कालू ........पुजारी तो मार पीट कर चले गए थे  ।


हाँ .......तुम मेरे नही हो ........तुम  इनके ही हो  !


तभी तो   छप्पन भोग  इनका खाते हो ........और  मेरे हाथ से एक केला नही खाया गया ........आज मेरा जन्म दिन था  ।


आँसू  आरहे थे ....पर दुःख से ज्यादा आक्रोश था आज कालू के मन में ।


पैरों में भी चोट लगी थी ....बेदर्दी से ही पीटा था कालू को पुजारियों नें ।


लड़खड़ाता  आया घर में ............कालू !   क्या हुआ बेटे ?  


माँ दौड़ पड़ी ............रो गया  कालू ....और माँ के गले से लग गया था ।


हिलकियाँ फूट पड़ी थीं......कालू की  ।


ये चोट कहाँ लगी ?    बता कालू  ?


माँ दौड़ी दौड़ी    दवा ले आई थी ......दवाई लगा दी कालू के  ।


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कालू ! कालू  !  


आँखें खोल कालू  !    बड़ी ही मधुर वाणी   थी   वो  ।


बालक कालू नें आँखें खोलीं...देखा....ओह !  दिव्य तेज़  छा गया था  ।


उठा  कालू ................कौन हो तुम ?    आँखें मलते हुए पूछा ।


मै बिठ्ठल  .......कालू !    मै तेरा अपराधी बिठ्ठल ।


मेरे कारण तुझे चोट लगी ना...........इतना कहकर   कालू के शरीर को छूआ भगवान नें .............चोट का दर्द सब खतम हो गया  था  ।


केला कहाँ है  ?   मुझे केले नही खिलाओगे ?   भगवान नें फिर कहा ।


हाँ ....खिलाऊंगा ............खिलाऊंगा   ।


वो दौड़ा .......भीतर गया ...........केला एक ही था .........वो लेकर आया .........और  बड़े प्रेम से  बोला .....खाओ । 


नही ..कालू !       मै ऐसे नही खा सकता ...........


क्यों नही खा सकते  ?    कालू नें पूछा ।


क्यों की  मेरे साथ मेरी  रुक्मणी भी हैं ना ........अकेले खाऊंगा तो उन्हें अच्छा नही लगेगा  ।


हाँ ...........कालू  को ये बात ठीक लगी  ।


वो  बोला ....एक मिनट !      कालू फिर गया  ........इधर उधर खोजनें लगा  ......पर  फिर उदास सा आगया ........नही मिला  दूसरा केला ।


कोई बात नही  कालू ...........हम सब इसी में से खा लेंगें  ।


अच्छा !  


    कालू की ख़ुशी का कोई ठिकाना नही था  ।


अब सो जाओ तुम ,  ठीक है !........सिर में हाथ रखा कालू के बिठ्ठल भगवान नें  उसके मस्तक को चूमा  और   अंतर्ध्यान हो गए ।


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मन्दिर खोला गया ..........


ये क्या ?   पुजारी लोग चौंक गए थे ।


चारों ओर केले के छिलके  पड़े हुए हैं ............।


उस चमार की ये हिम्मत !      उद्दण्डता बढ़ती जा रही है .......देख लो !  कहीं ऐसा न हो ये चमार ही  पुजारी बन बैठें ............एक पुजारी नें लाल आँखें दिखाते हुए  बोला था  ।


पर क्या बात है !       


बात बात क्या है ..........कल आया था  वो मंगतू चमार का बेटा .......बिठ्ठल भगवान के विग्रह में चढ़ गया .......और केला खिलानें की जिद्द कर रहा था .........उसी कालू नें  रात में आकर .........ये सब किया होगा ...........।


पर बच्चा कैसे आएगा  यहाँ ? 


एक दयालु किस्म के पुजारी थे वो बोले  ।


अरे ! मंगतू भी मिला होगा .......उसका बाप ............कहीं कुछ  गहनें भगवान के आभूषण चुरानें का इरादा तो नही है इन लोगों का ?


बस क्या था .......8 10 पुजारी होकर चल दिए    कालू चमार के घर की ओर ........।


नही ........क्या बात है !  क्यों चाहिये मेरा बेटा तुम्हे ?


मंगतू चमार अपनें दरवाजे पर खड़ा हो गया था ।


मेरे बेटे नें कुछ नही किया है ............जाओ यहाँ से !


मंगतू चिल्लाया ................एक पुजारी नें  पत्थर उठाकर  मार ही दिया ......सिर फट गया था मंगतू का ।


बापू !  क्या हुआ  ये लोग क्यों आये हैं  ?


मत मारो मेरे बेटे को .........8 वर्ष का ही तो है ये  .......मत मारो ।


मंगतू चिल्लाता रहा ..........पुजारियों नें   एक दो थप्पड़ मार दिए .....8 वर्ष के बच्चे के लिए ......एक दो थप्पड़ बहुत  है ।


और  फिर    उसी के बाप के ऊपर पटक कर चले गए ......कालू को ।


कालू की माँ का रो रोकर बुरा हाल था  ।


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अरे !  ये द्वार खुलता क्यों नही है ? 


पुजारी लोग  मन्दिर पहुँचे थे .........स्नानादि करके  .....और जब मन्दिर का द्वार खोलनें लगे ............पर ये क्या ?  द्वार खुलता ही नही ।


क्या हो गया  है  इस दरवाजे को .............


तोड़ दो इस दरवाजे को ......मुख्य पुजारी नें  आज्ञा दी ......पर नही ......ये लकड़ी  का नही लग रहा था आज .....ये तो ठोस पाषाण का हो गया था  ये दरवाजा  ।


क्या अपराध हो गया नाथ ! हम लोगों से  ?


एक भक्त थे ....बिठ्ठल के .......उन्होनें  सबके सामनें प्रार्थना की ।


तभी उस भक्त के हृदय में बिठ्ठल आगये .......और बिठ्ठल ही बोले ।


हे पुजारियों !     तुमनें  आज बहुत बड़ा अपराध किया है ........मेरे परम भक्त का हृदय दुखाया ........और इतना ही नही  उस भक्त परिवार को शारीरिक कष्ट भी दिया ........ये अपराध क्षम्य नही है .......भगवान की वाणी थी ये ।


क्या अपराध ?      सब पुजारी लोग सोचनें लगे  ।


कालू चमार को तुम लोगों नें पीटा......उनके पिता को पीटा .....गाली दी ।


सब पुजारियों के सिर झुक गए  ।


वो मेरा भक्त था .......परम् भक्त........तुमनें  उसका अपमान किया !


बिठ्ठल की वाणी कठोर होती जा रही थी  ।


मै जाति पांत कहाँ देखता हूँ ...........मै तो बस प्रेम का भिखारी हूँ ......मुझे जहाँ  प्रेम मिलता है ......मै उसी के हाथों बिक भी जाता हूँ ।


अब कैसे इस अपराध  का प्रायश्चित्त हो .....नाथ !


सब पुजारी लोग धरती में गिर पड़े थे ।


जाओ !  मेरी जो पालकी है ना .........उसी पालकी में उस "कालू" को बैठाकर लाओ .....और पालकी तुम केवल पुजारी लोग ही उठाओगे ।


भगवान की आज्ञा थी ......पालकी निकाली गयी  ।


*******************************************************


बापू ! ज्यादा चोट लगी है क्या  ? 


कालू अपनें पिता को पूछ रहा है  ।


नही ठीक है  .......सब ठीक है  बेटा !   


सुन कालू !  कल से  तू मन्दिर के पास नही जाएगा.....


मंगतू नें कहा  ।


अरे ! बापू   ये पुजारी लोग कुछ नही है ...........पता है बिठ्ठल से मेरा अब सीधा सम्बन्ध हो गया है  ........कालू नें आँखें मटकाते हुए कहा ।


अरे ! कालू की माँ !  अपनें पति और बेटा कालू को  कहीं छुपा दे .......पुजारी लोग फिर आरहे हैं  ।


एकाएक पड़ोसन ने चिल्लाकर कहा  ।


हे भगवान!  ये लोग क्यों पीछे पड़े हैं मेरे बेटे और पति के ।


दरवाजा खोलो !


.बाहर से  खटखटाया गया कालू के घर का दरवाजा .........


नही मै नही खोलूंगी ..........कालू की माँ चिल्लाई ।


अरे ! मंगतू भैया !   हम तुम्हारे हाथ जोड़ते हैं ....हमें माफ़ कर दो ।


पत्नी चौंक गयी ........ये क्या !   इनकी  भाषा ही बदल गयी  !


मंगतू भी चौंक गया ........।


कालू कहाँ है  ?    पुजारियों नें पूछा ।


कालू खुश होता  हुआ आया ...........दरवाजा खोल दिया ।


मै यही हूँ .............मै यही हूँ .........।


कालू  हमें क्षमा कर दो ....मंगतू हमें क्षमा कर दो ...............


दृश्य देखनें जैसा था .............पुजारी हाथ जोड़े खड़े थे ।


नही ऐसे मत बोलो .....मंगतू बोल उठा ।


कालू का हाथ पकड़ा ......और कहा  तुम यहाँ बैठो  ।


पालकी बिठ्ठल की ............!      छूआ  पहले तो कालू नें .......फिर उस नन्हे से बच्चे नें प्रणाम किया .............फिर बोला .......आप लोग चलिये मै बापू के साथ आरहा हूँ ...........।


नही .........पुजारी बोले .......कालू बेटे ! आपको इसमें बैठना है ........बिठ्ठल नें कहा है  .........।


नेत्रों से झरझर आँसू बहनें लगे थे कालू के.........हे मेरे बिठ्ठल !   तुम सबके हो ..........तुम नें आज ये सिद्ध कर दिया  ।


पर मै इस पालकी में कैसे बैठ सकता हूँ ......8 वर्ष का कालू रो पड़ा ......मेरे आराध्य हो आप .........और ये आपकी पालकी है  ।


कालू के इतना कहनें पर ....खाली  पालकी लेकर जैसे ही  चलनें लगे  पुजारी लोग ....पालकी उठी ही नही  .....।


भगवान यही चाहते हैं .........कालू तुम बैठो ..........भगवान की इच्छा में ही अपनी इच्छा मानों ।


कालू  रोते हुए .......बैठ गया ..........।


पूरे पंढरपुर ने इस दृश्य को देखा ....................


जैसे ही  कालू   को पालकी में बैठा कर  बिठ्ठल भगवान के मन्दिर में ले गए .........गर्भ गृह में गया  कालू .......


अपना मस्तक  बिठ्ठल भगवान के चरणों रखा ......और उसी समय उसके प्राण निकल गए.......वो समा गया था   बिठ्ठल में ।


श्री रामचरितमानस में भगवान श्री राम कहते तो हैं .............


"मानहुँ एक भगति कर नाता"


डा0 एस के कुलश्रेष्ठ


 


 


 


 


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