गौरवशाली है अखंड भारत का इतिहास

हमे अधूरा इतिहास ही अब तक पढाया गया 


देश के किसी कोने से आवाज आती रहती है कि मुसलमानो ने 800 साल राज किया। तो चलिए हम भी मराठो की विजयगाथा बताकर  इनका भ्रम तोड़ते है। 


सबसे पहले मराठो की उत्पत्ति आसान भाषा मे जानिए। श्री राम ने लक्ष्मण के पुत्र अंगद को मध्य और पश्चिम में शासन करने हेतु भेजा। अयोध्या के पूर्व सम्राट रघु ने महाराष्ट्र से असुरो को भगाया था। महाराष्ट्र में एक वीर क्षत्रिय जाति उभरी कालांतर में यही जाति मराठा कहलायी।


चौथे पांडव नकुल ने भी महाराष्ट्र से ही शासन संभाला और देवगिरी की स्थापना की, बाद में देवगिरी पर यदुवंशियों ने शासन किया। इस तरह आप कह सकते है कि मराठे सूर्य, चंद्र और यदुवंशियों की ही संतान है।


मगर इन्होंने 1674 तक मराठा नाम से कभी राज नही किया, महाराष्ट्र में मुस्लिम सत्ता आ चुकी थी। शिवाजी महाराज ने मराठो को संगठित किया और रघुकुल राज की हुंकार भरते हुए मराठा साम्राज्य की नींव रखी। शिवाजी महाराज ने वीरता के साथ मुगलो से मुकाबला किया, जब उनकी मृत्यु हुई उस समय उनके पास 300 किले थे।


महाराणा प्रताप के पास मृत्यु के समय मात्र 12 किले थे। 12 किले वाले महाराणा प्रताप इतनी बड़ी हस्ती है तो 300 किले वाले शिवाजी कितने बड़े राजा थे इसकी सिर्फ कल्पना की जा सकती है।


शिवाजी के बाद संभाजी राजा बने, संभाजी ने इन सो कॉल्ड 800 साल वालो से 170 युद्ध किये और सब मे विजयी हुए। मगर मुगलो की असली धज्जियां उड़ाई महान पेशवा श्री बाजीराव बल्लाड भट ने। 


बाजीराव ने देश के सारे सुल्तानों को मिट्टी में मिला दिया और सन 1737 में दिल्ली पर हमला किया, पेशवा विजयी रहे। 800 साल राज करने वाला मुगल बादशाह लाल किले के तहखाने में छिप गया और 3 दिन चूहे की तरह दुबका रहा।


इसके बाद 1756 में मुगल बादशाह आलमगीर खुद पेशवा के पास आया और बोला की महाराज मुझसे तो दिल्ली संभल नही रही, अब्दाली बार बार मुझे पीट कर जा रहा है। मुझे अब्दाली से मुक्ति दिलाओ। पेशवा नाना साहेब को दया आयी भीख देने उन्होंने अपने भाई राघोबा को दिल्ली भेजा।


राघोबा अपने पिता बाजीराव से आगे निकले, उन्होंने दिल्ली को पूरी तरह आजाद किया और ये 800 साल वालो को आज के पाकिस्तान के आखिरी छोर तक  तक घुसकर मारा। गैंग - 800 साल में राघोबा का खौफ इतना था कि यदि घोषणा हो जाती राघोबा आ रहे है तो गाँव के गाँव खाली हो जाते थे।


राघोबा ने दिल्ली पर कब्जा कर लिया और मुगल बादशाह को अपना गुलाम कहकर गद्दी पर बैठाया। इस तरह 800 साल राज करने वाले मुगल मराठो के गुलाम बन गए और इनका राज खत्म हो गया। इसके बाद 800 साल वालो पर सिखों ने हमला किया।


तो फिर से ये लोग मराठो के पैरों में गिरे, इस बार ग्वालियर के महाराज महादजी सिंधिया ने इन्हें बचाया। 1803 तक हमारे क्षत्रिय मराठे 800 साल वालो को गुलाम बनाकर दिल्ली पर राज करते रहे और अंत मे अंग्रेजो से हार गए। 1803 से 1857 तक 800 साल वाले अंग्रेजो के भी गुलाम रहे।


अब चलिये मराठो के पहले क्या था उस पर भी बात करते है, 1192 में 800 साल वाले दिल्ली में आये मगर दक्षिण भारत को 1565 तक नही जीत पाये, जब भी जीतने गए विजयनगर साम्राज्य के अन्ना लोगो ने इन्हें इडली सांभर के साथ मसलकर खाया। 1565 में विजयनगर साम्राज्य डूब गया तब इनका दक्षिण भारत पर कब्जा हुआ, मगर मैसूर के यदुवंशियों ने इन्हें मेदुवडे के साथ फ़्राय कर दिया और इस तरह ये कभी पूरे हिंदुस्तान पर एक साथ राज नही कर सके।


अब कृपया गणित में महारत रखने वाला कोई विद्यार्थी बताए कि मैं किस शर्म से कहु की भारत ने 800 साल इनकी गुलामी झेली। 800 साल का मुस्लिम राज मन की कोरी कल्पना है, किसी हिन्दू को हतोत्साहित होने की आवश्यकता नही है। यदि इनमें ताजमहल बनाने की कूबत होती तो ऐसी रचना पहले अरब या कुवैत में बन चुकी होती।


जब भी कोई मुगल के 800 साल की बात करे तो आप मराठो और विजयनगर का अध्याय छेड़ दीजिये, उसे दिल्ली के प्रथम और द्वितीय युद्ध की याद दिलाये अगली बार दिखाई नही देगा।


दो बाते अधिकतर वामपंथियों के मुँह से सुनने को मिलती है पहली यह कि मुगलो ने 800 साल राज किया दूसरी यह कि 800 साल राज करने के बाद भी हिन्दू धर्म खतरे में नही आया और आज भी हिन्दू बहुसंख्यक है। इनकी झूठी दलीलों से भटकने की जरूरत नहीं है खुद अवलोकन कीजिये 


पहली बात मुगलो ने 800 साल कभी राज नही किया, हाँ 1192 में दिल्ली को मुहम्मद गौरी ने जीत लिया था मगर दिल्ली और संपूर्ण भारत में अंतर है, अकबर और औरंगजेब के अलावा कोई मुस्लिम शासक लंबे समय तक दिल्ली या आगरा पर राज ना कर सका। हाँ यह राज उन्होंने काबुल कांधार पर किया, सिंध और लाहौर पर लंबे समय तक राज किया अब कोई वामपंथी बताये की पाकिस्तान और अफगानिस्तान में आखिर कितने हिन्दू बचे???


मतलब यह कि मूल भारत मे उन्हें इस्लाम फैलाने का मौका ही नही मिला, कोई भी मुस्लिम शासक ज्यादा समय राज नही कर सका और जितना किया वो भी डर डरकर क्योकि मंगोलो और दूसरे राज्यो के आक्रमण लगातार होते रहे ऐसे में इस्लाम फैलाने की फुरसत कैसे??? और दूसरा जो मुस्लिम शासकों को था वो यह कि हिन्दुओ पर अत्याचार हिन्दुओ को उनका विरोधी ना बना दे या हिन्दू मंगोलो के साथ ना मिल जाये इसीलिए इल्तुतमिश, रज़िया और बलबन जैसे मुस्लिम शासकों ने हिन्दुओ से हाथ मिलाया। 


बाबर 1526 में भारत आया और 1530 में मर गया इन चार सालों में उसने 4 बड़े युद्ध किये अब उसे इस्लाम फैलाने का समय नही मिला, यही हाल हुमायूं का हुआ, अकबर ने इस्लाम फैलाने की पूरी कोशिश की मगर बाद में उसने दीन ए इलाही धर्म अपना लिया इसलिए उसके राज के 48 वर्ष धरे के धरे रह गए। जहाँगीर और शाहजहां वैभव और विलास में डूब चुके थे उनके काल मे अंग्रेज और फ्रांसीसी घुस आए मगर उन्हें नर्तकियों से फुर्सत नहीं मिली। 


औरंगजेब जब तक बादशाह बना तब तक उत्तर में सिखों का और दक्षिण में मराठाओ का उदय हो चुका था, औरंगजेब ने 50 साल राज किया मगर 25 से ज्यादा वर्ष उसे मराठाओ और दक्षिणी राजवंशो से लड़ने में लग गए। औरंगजेब की मौत के बाद तो जब पेशवाओ ने हमले शुरू किये तब मुगलो को भागते देर नही लगी। 


सबसे पहले गुजरात मराठाओ के कब्जे में आया बड़ौदा को राजधानी बनाया गया, जूनागढ़ के नवाब ने बड़ौदा के गायकवाड़ राजा के आगे हथियार डाल दिये और आश्वासन दिया कि उसके नवाब रहते किसी हिन्दू को परेशान नहीं किया जाएगा। 


यही मध्यप्रदेश में हुआ दक्षिण से होल्कर और उत्तर से सिंधिया ने एक साथ हमला किया भोपाल को छोड़कर पूरा मध्यप्रदेश मराठा साम्राज्य में मिल गया, भोपाल का नवाब घिर चुका था यदि हिन्दुओ के साथ कुछ करता तो सिंधिया या होल्कर से युद्ध को आमंत्रित करता। राजस्थान में भी राजपूतों ने एकता दिखानी शुरू की और एक एक करके सारे साम्राज्य आज़ाद होते गए। 


कश्मीर पर हिन्दुओ का आधिपत्य हुआ, जालंधर और पटियाला सिखों के हाथ आ गए। पूर्वी भारत मे छोटे छोटे राजवंशो में चिंगारी भड़क उठी, सिर्फ पूर्वी बंगाल शेष रह गया जो आज बांग्लादेश बन चुका है। इस तरह मुगलो का सफाया पूरे भारत से हुआ।


इसीलिए यदि कोई आपसे कहे कि मुगलो ने 800 साल राज किया और फिर भी आज हिन्दू 100 करोड़ है तो उसे आईना दिखाने में परहेज ना कीजिये, मुगलो का पतन मराठा, राजपूत, जाट और सिख एकता का परिणाम था। हमारे पूर्वजों ने कठिन युद्ध करके इस देश पर भगवा फहराया है, भारत के अंदर मुगलो को मौका नही मिला इसलिये आज यहाँ हिन्दू बहुसंख्यक है। 


जहाँ मुगलो को मौका मिला वो जगह (ईरान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश) तो आज इस देश के नक्शे में है भी नही, हिन्दुओ की तो पूछो ही मत। मुगलो की किस्मत अच्छी थी कि जब हिन्दू जागे तब तक ब्रिटिश अंदर घुस आए और जल्दबाजी में झक मारकर दिल्ली के सिंहासन पर बैठे बहादुर शाह जफर को बादशाह बनाना पड़ा। 


यदि अंग्रेज 50 साल की देर और करते तो मुगलो का नाम भी आज इस देश मे नही मिलता।


फेसबुक पर सबसे ज्यादा लिखी जाने वाली भारतीय भाषा हिन्दी ही है। 


 हिन्दी के मुद्दे पर एक कन्नड़ भाषी मित्र ने आपत्ति जताई वो यह की हिन्दी लागू करके दक्षिण भारतीयों की पहचान छीनी जाएगी, मैंने पूछा कैसे तो उनका उत्तर संतोषजनक था. उन्हें आपत्ति है की दक्षिण के इतिहास को पूरी तरह नकार दिया जाता है, आप कब तक पंडित नेहरू को दोष देकर संतुष्ट हो जाओगे की उन्होंने असली इतिहास छिपा दिया, लेकिन फेसबुक और व्हाट्सअप पर खुद हिंदूवादी ही दक्षिण को महत्व नहीं देते. 


खिलजियों के खिलाफ मेवाड़ से भी बड़ी जंग तमिलनाडु के पांड्य वंश ने लड़ी थी ज़ब मालिक काफूर ने हमला किया था मगर कितने हिंदूवादी इसकी चर्चा करेंगे?? पंडित नेहरू के दादा परदादा ये थे वो थे इस बकवास के लिए पूरा अध्ययन करेंगे मगर अपने ही देश का एक राजवंश जिसने 800 वर्ष दक्षिण भारत को बचाया उसके बारे मे एक लाइन नहीं लिखेंगे.


उनका कहना है हम श्री राम का सम्मान करते है मगर शेष भारत किष्किंधा (वर्तमान मे कर्नाटक) की मदद को नजरअंदाज करता है, सुग्रीव अंगद जामवंत जो कि कन्नड़ भाषियों के पूर्वज है इनकी कही कोई ज्यादा चर्चा नहीं होती?? क्या राम किष्किंधा की मदद लिये बिना लंका जीत सकते थे?? कृष्ण देव राय ने बहमनी सल्तनत के 5 टुकड़े कर दिए थे।


कुछ भी कहो बन्दे की बात मे दम था. ये बात सही है की हमें प्रांतवाद से ऊपर उठ जाना चाहिए ।
 वैसे मै खुद हिन्दीभाषी हु मगर ये एक कटु सत्य है की दक्षिण के इतिहास और संस्कृति को जमकर नकारा गया है. दक्षिण की ऐसी कई जातियाँ है जो क्षत्रिय है मगर आज क्षत्रिय शब्द महज राजपूत का पर्यायवाची बनकर रह गया. जबकि राजपूत क्षत्रिय वर्ण का अंगमात्र है.


जिस अखंड भारत का सपना आप बुन रहे है उसकी नींव मुस्लिम विरोध पर नहीं हिन्दू एकता पर टिकेगी. हिन्दू एकता तब ही संभव है ज़ब आप पुरे देश को साथ लेकर चलेंगे. यदि आप हल्दीघाटी मे युद्धरत महाराणा प्रताप की प्रशंसा करते है साथ ही दिल्ली के विजेता पेशवा बाजीराव  पर भी गर्व कर सकते हैं। 


आप महाराणा सांगा का गुणगान तो करते है मगर कृष्णदेव राय जो बहुत शक्तिशाली थे और बहमनी सल्तनत से लड़ रहे थे, उनका योगदान भी महत्वपूर्ण है। भारत का शौर्य सिर्फ राजस्थान तक नहीं है पंजाब, कर्नाटक,  बंगाल और महाराष्ट्र की भी अपनी भूमिकाये है. ये 21वी सदी का भारत है यहाँ आपको जाति या प्रान्त का मोह छोड़कर समूचे भारत का इतिहास पढ़ना होगा. अन्यथा अखंड भारत की थ्योरी को हिन्दू तालिबान का रूप देने मे कुछ पार्टियां देरी नहीं करेंगी


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