कवि गोष्ठी

'कितनी है पत्थर पर आस्था सोचू


-धाद साहित्य एकांश की ओर से शास्त्री नगर में काव्य गोष्ठी का आयोजन
-कवियों ने वसंत और सामाजिक सरोकारों से संबंधित रचनाएं सुना तालियां बटोरी


जागरण संवाददाता, देहरादून: सामाजिक और साहित्यिक संस्था धाद साहित्य एकांश की ओर से रविवार को शास्त्री नगर स्थित एक वेडिंग प्वाइंट में मासिक कवि गोष्ठी का आयोजन किया गया। कवियों ने वसंत के अलावा प्रेम-प्यार और सामाजिक सरोकारों से संबंधित रचनाओं से श्रोताओं की वाहवाही लूटी। 
काव्य गोष्ठी की शुरूआत में शायरा निकी पुष्कर ने 'कुछ भी तो किसी से निहां न रह सका। आईना होके ये खसारा हुआÓ और 'उम्र भर के लिए मेरे साथ ही रह गया। वो इक लम्हा तेरे साथ गुजारा हुआ।।Ó सुनाकर श्रोताओं की तालियां बटोरी। इसके बाद वरिष्ठ कवियत्री सुजाता पटनी ने अपनी रचना 'सीता सावित्री और उर्मिला के, गौरव को फिर पुनर्जीवित कर दे। मौन त्यागकर तू मुखरित होकर स्व अस्तित्व का शंखनाद कर दे।।Ó से नारी शक्ति का आह्वान किया। 
शायर अवनीश उनियाल ने तरन्नुम से गजल 'मेरी आवाज में लर्जिश आपकी। मेरे सुर हैं मगर बंदिशें आपकीÓ सुनाकर तालियां बटोरी।।Ó दर्द गढ़वाली के दो शेरों 'राब्ता है उससे क्या मेरा सोचूं। उससे मिलने का फिर रास्ता सोचूं।। आज नहीं तो कल मेहरबां होगा। कितनी है पत्थर पे आस्था सोचूं।।Ó को भी दाद से नवाजा गया।। कवि सुनील त्रिवेदी ने अपनी कविता 'जननायक बनना सरल नहीं है, ये खेल है त्याग तपस्या का। ऐसे सपनों से नाता सिर्फ दीवाने रखा करते हैं।Ó से सच्चे जनप्रतिनिधि की विशेषता बताई। संस्था की अध्यक्ष कल्पना बहुगुणा ने मधुर गीत 'तुम आना जरूर आना, चाहे कैक्टस बनकर आना, आना तो सहीÓ और 'प्रेम का ये कैसा व्याकर समझ न आए। डूबे जितना इसमें, दर्द उतना उभर आएÓ सुनाकर श्रोताओं की तालियां बटोरी। अध्यक्षता वरिष्ठ कवियत्री डॉ. नीलमप्रभा वर्मा ने की और संचालन मंजू काला ने किया।


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