कविता

मेरे माता-पिता तुम चले गए कँहा 


ढूंढ रहा हूँ तुमको मैं यहां वहां
न जाने ढूंढा तुमको कहां कहां
कहां चले गए आकर बता तो दो
जहां रह रहे हो वहां का पता दो
तुम ही  लाये थे मुझको दुनिया मे
मेरे लिए ख्वाब सजाये दुनिया मे
मेरे ख्वाब पूरे कर कहां चले गए
मातपिता मेरे तुम कहां चले  गए
तुम्हे देखकर लगता था, बच्चा हूं
साया हटते ही बचपना बीत गया
खुशियो भरा कुंभ जैसे रीत गया
तुमने सुसंस्कार दिये मेरे काम आए
सत्य पथ पर न कदम डगमगाए
हौंसला दिया जो अन्याय से लड़ने का
उसी से मेरे कदम यहां टिक पाये
जानता हूं स्वर्ग है तुम्हारा ठिकाना
सत्कर्म किये वही आपके काम आए।
मदन -प्रकाशवती की अनूठी जौडी
हर बार साथ आये जैसे चांद चकोरी।
----श्रीगोपाल नारसन


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