कविता

'मै ही सब हूँ मत कर अभिमान



मैं' ही करता हूं सबकुछ
मत पालिए यह अभिमान
करने वाला तो कोई ओर है
उसी के बारे में तू अब जान
इस सृष्टि का रचियता  वह
नही उसको कोई अभिमान
करता सबकुछ वही तो है
मुफ्त में पाते हम सम्मान
निमित्त बनकर सेवा करो
सभी कार्य उसका जान
'मैं'पन स्वयं दूर हो जाएगा
सफलता अपनी निश्चित जान।
----श्रीगोपाल नारसन


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