*मैथिलीशरण गुप्त की सुन्दर रचना*
तप्त हृदय को , सरस स्नेह से ,
जो सहला दे , *मित्र वही है।*
रूखे मन को , सरोबोर कर,
जो नहला दे , *मित्र वही है।*
प्रिय वियोग ,संतप्त चित्त को ,
जो बहला दे , *मित्र वही है।*
अश्रु बूँद की , एक झलक से ,
जो दहला दे , *मित्र वही है।*
*🌷सुप्रभात*🌷
No comments:
Post a Comment