निर्दोष ब्राह्मण बने थे निशाना

1948 मे भी गिरा था बडा पेड धरती भी हिली थी और मारे गए थे 8000 निर्दोष मराठी ब्राह्मण 


गांधी की हत्या के बाद हुआ था 'नरसंहार' जिसे क्यों दबाया गया...???


30 जनवरी 1948 को हुआ क्या था... ये सबको पता है इसी दिन शाम 5 बजकर 17 मिनट पर गोडसे ने बापू की जान ले ली थी... लेकिन उसके बाद उस रात क्या हुआ था??? ये किसी को नहीं पता... लेकिन ये पता होना चाहिए... ये पता होना चाहिए कि खुद को लिबरल, सेक्युलर, अहिंसक बताने वाले गांधी के चेलों ने उस रात गांधी के नाम पर क्या महापाप किया था... ये पाप इतिहास की किताबों से मिटा दिया गया है... लेकिन आज सच बताना ही होगा क्योंकि ये लिबरल, ये सेक्युलर एक बार फिर गांधीवाद के नकाब के पीछे अपनी कुत्सित चालें चल रहे हैं।


तो सुनिए क्या हुआ था ग़ांधी हत्याकांड के बाद... देर रात तक पूरे भारत में ये ख़बर फैल गई थी कि गांधी का हत्यारे का नाम नाथूराम गोडसे है और उसकी जाति चितपावन ब्राह्मण है... देखते ही देखते ही बापू को मानने वाले “अहिंसा के पुजारियों” ने पूरे महाराष्ट्र में कत्लेआम शुरु कर दिया... 1984 की तरह कांग्रेस के इन कार्यकर्ताओं के निशाने पर थे महाराष्ट्र के चितपावन ब्राह्मण... सबसे पहले दंगा मुंबई में शुरु हुआ उसी रात 15 लोग मारे गए और पुणे में 50 लोगों का कत्ल हुआ... भारत में ख़बर छपी या नहीं पता नहीं लेकिन अमेरिकी अख़बार वाशिंगटन पोस्ट ने इस कत्लेआम को अपनी हेडलाइन बनाया...


लेकिन सबसे दुखद अंजाम हुआ स्वतंत्रता सेनानी डॉ. नारायण सावरकर का... नारायण सावरकर वीर सावरकर के सबसे छोटे भाई थे... गांधी की हत्या के एक दिन बाद पहले तो भीड़ ने रात में वीर सावरकर के घर पर हमला किया लेकिन जब वहां बहुत सफलता नहीं मिली तो शिवाजी पार्क में ही रहने वाले उनके छोटे भाई डॉ. नारायण सावरकर के घर पर हमला बोल दिया... डॉ. नारायण सावरकर को बाहर खींचकर निकाला गया और भीड़ उन्हे तब तक पत्थरों से लहूलुहान करती रही जब तक कि वो मौत के मुहाने तक नहीं पहुंच गए... इसके कुछ महीनों बाद ही डॉ. नारायण सावरकर की मौत हो गई... मुझे पता है लोग बोलेंगे वीर सावरकर ने तो अंग्रेज़ों से माफी मांगी थी, गांधी हत्याकांड में उनका नाम आया था... ठीक है... लेकिन कोई ये नहीं बोलेगा कि इसमें उनके छोटे भाई और स्वतंत्रता सेनानी डॉ. नारायण सावरकर का ऐसा क्या गुनाह था, जिसके लिए उन्हे पत्थर मार-मार कर मौत की सज़ा दे दी गई ??? आप ही बताइए कि आज़ादी का ये सिपाही, क्या ऐसी दर्दनाक मौत का हकदार था ???


पहले निशाने पर सिर्फ चितपावन थे... लेकिन बापू के “अहिंसा के पुजारियों” ने सभी महाराष्ट्रीयन ब्राह्मणों को निशाना बनाना शुरु कर दिया... मुंबई, पुणे, सांगली, नागपुर, नासिक, सतारा, कोल्हापुर, बेलगाम (वर्तमान में कर्नाटक) मे जबरदस्त कत्लेआम मचाया गया... सतारा में 1000 से ज्यादा महाराष्ट्रीयन ब्राह्मणों के घरों को जला दिया गया... एक परिवार के तीन पुरुषों को सिर्फ इसलिए जला दिया गया क्योंकि उनका सरनेम गोडसे था... उस कत्लेआम के दौर में जिसके भी नाम के आगे आप्टे, गोखले, जोशी, रानाडे, कुलकर्णी, देशपांडे जैसे सरनेम लगे थे भीड़ उनकी जान की प्यासी हो गई।


मराठी साहित्यकार और तरुण भारत के संपादक गजानंद त्र्यंबक माडखोलकर की किताब “एका निर्वासिताची कहाणी” (एक शरणार्थी की कहानी) के मुताबिक गांधीवादियों की इस हिंसा में करीब 8 हज़ार महाराष्ट्रीयन ब्राहमण मारे गए... खुद 31 जनवरी को माडखोलकर के घर पर भी हमला हुआ था और उन्होने महाराष्ट्र के बाहर शरण लेनी पड़ी थी और अपने इसी अनुभव पर उन्होने ये किताब “एका निर्वासिताची कहाणी” (एक शरणार्थी की कहानी) लिखी थी...


लेकिन जब आप 1948 के इस नरसंहार का रिकॉर्ड ढूंढने की कोशिश करेंगें तो आपको हर जगह निराशा हाथ लगेगी... भारत में आज तक जितने भी दंगे हुए हैं उसकी लिस्ट में आपको Anti-Brahmin riots of 1948 का जिक्र तो मिलेगा लेकिन जब उसके सामने लिखे मारे गए लोगों का कॉलम देखेंगे तो इसमें लिखा होगा Unknown…!!!! यानि दंगे तो हुए लेकिन कितने ब्राह्मण मारे गए इसका कहीं कोई ज़िक्र नहीं है... क्यों जिक्र नहीं है ?... क्यों इतिहास के इस काले पन्ने को मिटा दिया गया ?... वजह सिर्फ एक है आने वाली पीढ़ी को ये कभी पता नहीं चलना चाहिए कि गांधी टोपी पहनने वाले “अहिंसा के पुजारियों” ने कैसा खूनी खेल खेला था... क्यों नेहरू और पटेल इस हिंसा को रोकने में ठीक उसी तरह नाकाम रहे जिस तरह वो गांधी के हत्यारे को रोकने में नाकाम रहे थे। 20 जनवरी को गांधी पर पर पहला हमला होने के बाद ही पता चल जाना चाहिए था कि गांधी की जान को किससे खतरा है... 20 जनवरी के बाद अगलेले 10 दिन तक नेहरू और पटेल की पुलिस गोडसे तक नहीं पहुंच पाई, उसकी पहचान पता नहीं कर पाई... लेकिन जैसे ही 30 जनवरी को गोडसे ने बापू की जान ले ली, तो महज 6 घंटे के अंदर उसकी पहचान, उसका धर्म, उसकी जात, और जात में भी वो कौन सा ब्राह्मण है ये सब जानकारी महाराष्ट्र की उन्मादी कांग्रेसी गांधीवादियों को मिल गई... वो भी उस दौर में जब सोशल मीडिया तो छोड़िये फोन भी नहीं होते थे... क्या तब भी “बड़ा बरगद गिरता है तो धरती तो हिलती ही है” ये वाली सोच काम कर रही थी ???


इतिहास में जाओगे तो नफरत हो जाएगी कांग्रेस के नाम से ही ।


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