संघ का लक्ष्य

ऋषि मुनियो, बलिदानीयो की राह पर चलने का पक्षधर है संघ


संघ का हिंदुत्व भारतीय #संस्कृति के बीच रचा पचा हिंदुत्व है। उसमें राष्ट्रीय चेतना की हिलोर है। संघ का #हिन्दूदर्शन राजनीतिक चेतना को महत्व तो देता है, पर वह भारतीय #बलिदानियों #ऋषियों की पृष्ठभूमि पर जीवन जीने का पक्षधर है। 
         यहाँ हम समझ लें कि ऋषि सदैव किसी भी जाति-पांति, धर्म से परे होते हैं। वे भारतीय #मूल्यों व भारतीय संस्कृति की पृष्ठभूमि में संघर्षरत रहकर जनमानस का मार्गदर्शन करने वाले #हिन्दू, मुश्लिम, #सिक्ख, पारसी, ईसाई सहित अनेक #धर्म, जाति, वर्ग से क्यों न हों। 
वास्तव में द्वेषरहित जीवन मूल्य इस हिन्दू की परिभाषा है। इन परम्पराओं को मानने वाला #भारतभूमि पर निवास करता हो अथवा किसी भी देश में।
       अर्थात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जिस विराट #उदारवादी भावना के साथ हिंदुत्व परम्परा को वर्षों से पोषित करता आ रहा हो, उसकी श्रेष्ठ छवि पर कोई #दल, #संगठन, वर्ग व #व्यक्ति अपनी नासमझी के चलते राजनीति साधने के लिए बट्टा लगाए, तो इसे संघ कैसे बर्दास्त कर सकता है।
        संघ कैसे स्वीकार कर सकता है कि कोई उसके हिंदुत्व की #पवित्र परम्परा को #कट्टरता का पर्याय बनाकर टुकड़े टुकड़े रूप में प्रस्तुत करे ।
         राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के #महामंत्री आदरणीय सुरेश #भैयाजीजोशी ने देश में हिंदुत्व के नाम पर चल रही कुछ मुट्ठीभर लोगों के आधारहीन विवेक से उपजी हवाओं को ध्यान में रखकर ही एक प्रकार से संदेश दिया होगा। 
उनका यह कहना देश में भारतीय चेतना को उदारता के साथ जीने वाले विराट जनमानस को संतोष देने वाला है।
       भैयाजी का वक्तब्य कि "हिंदू समुदाय भारतीय जनता पार्टी (#बीजेपी) का पर्याय नहीं है और बीजेपी का विरोध करने का आशय #हिंदुओं का विरोध करने के समान नहीं कहा जा सकता।"
          यह बक्तव्य हिंदुत्व की राजनीतिक दिशाधारा के लिए भी #मील का #पत्थर कहा जा सकता है।
    भारत को #परमवैभव पर पहुचानें की कल्पना रखने वाले व्यक्तियों के लिए भी भैयाजी का संदेश चिंतन योग्य है।


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