स्वयं के लिए नही राष्ट्र के लिए संघ के स्वयंसेवक का जीवन
दिल्ली में संघ के प्रचारकों के
अभ्यास वर्ग का चौथा और अंतिम दिन था। अखिल भारतीय प्रचारक प्रमुख श्री सुरेश चन्द्र जी ने एक प्रसंग बताया "जिन दिनों ठाकुर रामसिंह जी प्रचारक निकले, यह बात 1944-45 की है, उन्होंने प्रांत प्रचारक माधवराव जी को पत्र लिखा
"मेरे पास पैसे बिल्कुल खत्म हैं,आने जाने के लिए भी दिक्कत है कृपया कुछ पैसे भेज दें!" 20 दिन बाद फिर पत्र भेजा दोनों बार कोई उत्तर नहीं~!!!
2 महीने बाद जब माधवरावजी मिले तो ठाकुर रामसिंह जी ने शिकायती स्वर में कहा "मैंने आपको इतनी आवश्यकता होने पर पत्र लिखा और आपने कोई उत्तर नहीं दिया~!!?!!"
तो प्रांत प्रचारक माधवरावजी ने कहा "अरे क्या उत्तर देता, मेरे पास तो अपने खाने के लिए पैसे भी नहीं थे! तेरे को कहाँ से मैं भेजता इसीलिए क्या चिट्ठी लिखता~!!?!! पर हमें ऐसे ही संघ कार्य को बढ़ाना है"
फिर बाद में मैंने नगर व जिला प्रचारकों से चर्चा करते हुए पूछा "क्या आजकल भी तुम्हें भूखा रहना पड़ता है?"
तो 5 में से चार ने कहा "हां! बीच-बीच में अभी भी जब नए क्षेत्र और नए घरों में जाते हैं तो हमें भूखा रहकर भी काम करना पड़ता है!" स्वयं भूखा रहकर संघ कार्य बढ़ाना यह अपनी पुरानी परंपरा है।
माननीय सुरेशजी ने समापन सत्र में कथा सुनाई "एक राजा था!उसका राज्य उससे छिन गया तो वह एक संत की शरण में पहुंचा!संत ने कहा "जाओ उस पेड़ के नीचे बैठ जाओ,जो मांगोगे वह मिलेगा।"
राजा उस पेड़ के नीचे जाकर कहने लगा " मुझे भोजन की प्राप्ति हो!" तुरंत भोजन आ गया फिर उसने इच्छा कि मुझे अच्छा बिस्तर,सोने को जगह मिल जाए वह भी मिल गया! फिर उसने कहा कि मुझे तो राज्य ही मिल जाए~!! तो कुछ समय बाद ही उसके नौकर आए और उन्होंने बताया "विद्रोही राजा को जनता ने मार दिया है और आपको सादर पुनः राज्य के लिए बुलाया है~!!"
राजा को बड़ा आश्चर्य
हुआ कि अगर यह पेड़ इतना सब कुछ देता है~!?! राज्य तक देता है,तब यह संत दुबले-पतले और कष्टपूर्ण जीवन क्यों जी रहे हैं~!?! उन्होंने जाकर संत को प्रणाम किया, और पूछा "आप अपने लिए क्यों
नहीं मांगते~!!?!!"
तो संत ने कहा "हमारी तपस्या के कारण ही यह कल्पवृक्ष खड़ा है!अगर
हम स्वयं ही इसका उपभोग करने
लग गए तो इसकी शक्ति समाप्त
हो जाएगी यह आप लोगों के लिए
ही है" मुझे याद आ गया कि जब
कश्मीरी लालजी, जो सामान्यता
स्लीपर क्लास में ही सफर करते हैं, तो मैंने कार्यकर्ता को कहा कि उनका आरक्षण एसी में कराया करो, तो कार्यकर्ता ने कहा" हम तो करा देते,किंतु कश्मीरी लालजी मानते ही
नहीं।"
ऐसे ही होते हैं हमारे संघ प्रचारक~!! इसी से ही बढ़ रहा है संघ और संघ परिवार के विविध संगठनों सहित यह राष्ट्रव्यापी वटवृक्ष।
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