विनम्र राष्ट्रसेवक नलनिधर जयाल

 


नलनिधर जयाल जी को विनम्र श्रद्धांजलि 


*एक महान व्यक्तित्व का गुमनामी में चला जाना


(साभार अंकित कुमार पर्यावरणविद्,समाजसेवी देहरादून


जी हाँ! हम बात कर रहे हैं विलक्षण व्यक्तित्व और पूर्व नौकरशाह, पर्वतारोही, प्रकृतिविद और फाइटर पाईलट नलिनी धर जयाल जी की। यह हिंदुस्तान के एक ऐसे अनोखे नायक की कहानी है जिसकी जिंदगी की पदचापों के साथ देश के अनोखे पर्यावरण इतिहास की कहानी चुपचाप लिखी गई पर अफसोस कि इस विरले टाइगर को उसके हिस्से की जगह देश के इतिहास के पन्नों में नहीं मिली।  उन्होंने आम आदमी के हित में देश की नीति-रीति को बनाया पर अपनी शालीनता के चलते वो इतिहास के पन्नों में गुम होकर सिर्फ आर्काइव का हिस्सा ही बनकर रह गए। 


उत्तराखंड के लोगों को तो पता ही नहीं कि ऐसा भी कोई खामोश रचनाधर्मी नायक उत्तराखंड की धरती में कभी उपजा था। 
           
दून स्कूल के पहले बैच से पढ़कर निकले इस नायक ने देश के तीन-तीन प्रधानमंत्रियों पंडित नेहरू जी, इंदिरा गाँधी और राजीव गाँधी के साथ काम करके देश की नीतियां- रीतियाँ गढ़ीं किन्तु वे इतना विनम्र और शालीन थे कि उनकी एक भी तस्वीर इनके साथ नहीं है। बकौल जयाल, *"हम तो काम करते थे किसको फुरसत थी फोटो जमा करने की।"* 


उनकी थोड़ी उपलब्धियां कुछ यूं हैं-


 श्री जयाल ने कई चोटियों के आरोहण में हिस्सा लिया। इसका जिक्र कई हिमालय जर्नल में अंकित है। दूसरा श्री जयाल एक फाईटर पायलट थे। वे एयर फोर्स के उस अभियान का हिस्सा थे जिसने पहली बार उस वक्त माउंट एवेरेस्ट के ऊपर उडकर दुनिया को एवरेस्ट समेत हिमालय की तमाम चोटियों के चित्रों की सौगात दी, वह भी उस वक्त जब एडमंड हिलेरी और तेन सिंह नोर्गे पहली बार माउंट एवरेस्ट पर चढ़े थे। 


तीसरा, वे एयर फोर्स छोड़कर नेहरु जी की पहल पर इंडियन फ्रंटियर सर्विस में शामिल होकर नेफा में पोलिटिकल ऑफिसर बनकर गये। उन्होंने नेफा में जो काम उस दौर में आदिवासियों के बीच किया उसकी बदौलत वह आज भी अरुणांचल प्रदेश में एक नायक की तरह याद किये जाते हैं।


चौथा, हिमाचल प्रदेश जिस बागवानी और खेती के कारण समृधि की ऊँचाई पर है उसमें भी स्व0 जयाल का योगदान है। वो किन्नौर के पहले कलेक्टर थे। उन्होंने १९६० से १९६७ तक ग्रामीण विकास का जो ऐतिहासिक मील का किन्नौर में पत्थर रखा, वो एक रोमांचक यात्रा है कि कैसे किन्नौर आज इतना संम्पन है। 


स्व0 जयाल ने प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के साथ पर्यावरण मंत्रालय में पहले जॉइंट सेक्रेटरी के तौर पर मंत्रालय का रोड मैप बनाकर मंत्रालय की नींव रखकर देश की पर्यावरण नीति तैयार करने और देश में पहले नेशनल पार्क और सैन्क्चुरी की नींव रखने में खास योगदान दिया। डॉ0 सलीम अली, डॉ माधव गाडगिल और देश के वैज्ञानिकों की टीम के साथ विज्ञान और टेक्नोलॉजी का खाका खींचा। उसी ताने-बाने पर देश में विज्ञान के विकास का रोड मैप तय हुआ।  स्व0 जयाल ने केरल के साइलेंट वैली प्रोजेक्ट अंडमान और निकोबार के जंगलों को बचाने और चिपको आन्दोलन में जो योगदान दिया किया वो देश दुनिया की एक ऐतिहासिक घटना है।


रिटायर होने के बाद इंटेक ट्रस्ट के महानिदेशक के नाते उन्होंने देश में पर्यावरण संरक्षण हेतु अभूतपूर्व काम किये। टिहरी बांध के आन्दोलन में उनकी भूमिका अपने में एक इतिहास है। इतनी उपलब्धियों के बावजूद वो एक नम्र, शालीन और खामोश व्यक्ति थे। यही उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि है।


18 मार्च को वे इस दुनिया से यूँ ही गुमनाम चले गए। टीम कल्पतरु ने उत्तराखंड में जन्में भारत के इस बेटे की याद में आज सुबह कोसी बायोदिवर्सिटी पार्क में एक रुद्राक्ष का पौधा लगा कर अपनी ओर से उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की।


No comments:

Post a Comment

Featured Post

भाजपा ने मनाया जनजातीय गौरव दिवस

हरिद्वार 15 नवंबर भाजपा जिला कार्यालय हरिद्वार पर *15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस* के रूप में मनाया गया। *भाजपा जिला अध्यक्ष संदीप गोयल* भगवा...