*पूर्व जन्म के पुण्य का फल उदय होने पर ही मानव और देव तत्व की प्राप्ति होती है (डा0 एस के कुलश्रेष्ठ)
भगवान कहते हैं मेरे मार्ग में बीज का नाश नहीं होता।*
*पूर्वजन्म का साधक दूसरे जन्म में श्रीमानों के कुल में जन्म ले, वहीं से यात्रा प्रारंभ कर लेता है, जहाँ पीछे छोड़कर आया है।*
*यही हुआ, सतीजी पर्वतराज हिमाचल के यहाँ उमा होकर जन्मीं।*
*"पावन पर्वत वेद पुराणा" शास्त्र रूपी पर्वत की परम्परा में जन्मीं।*
*माँ कौन हैं? मैना, मैं ना। पहले दक्ष पुत्री थीं, वहाँ अहं था, अब अहं रहित हैं।*
*सतीजी शंकालु थीं, उमा श्रद्धालु हैं।*
*शंका के कारण सतीजी का जीवन नष्ट हो गया, श्रद्धा के कारण उमा सत्य पाकर, पार हो कर, पार-वती हो गईं, पार्वती हो गईं।*
*जो सच्चा मुमुक्षु साधक एकबार आत्मज्ञानी सद्गुरू की पकड़ में आ जाता है, वह गिरते पड़ते, उसी शरीर से नहीं तो, एक दो जन्मों के अंतराल में लक्ष्य को पा ही जाता है।*
*देखो, उमा को संत खोजने जाना नहीं पड़ा, संत ही आ गए, अपनेआप आ मिले, बचपन में ही आ मिले।*
*इससे पहले कि संसार का कोई नया संस्कार हृदय पर पड़ता, संत आ गए,*
*"नाद रंध्र की प्राप्ति वाले महापुरुष" नारद जी आ गए।*
*उमा को संतचरणों में डाल दिया गया, उमा श्रद्धा है, माने अपनी श्रद्धा का समर्पण संत चरणों में ही करना चाहिए।*
*संत ने पूर्वजन्म के सद्गुरू का परिचय बता दिया।*
*उमा को स्मृति हो आई, गुरुजी की याद आ गई, प्राण तड़प गए, कुछ भी करना पड़े, जीवन ही दाँव पर क्यों न लग जाए, कितना ही इन्द्रियों को तपाना पड़े, इस बार चूकना नहीं, सद्गुरू मेरा आत्म निवेदन स्वीकार कर लें, मुझे अपना बना लें, मेरे सिर पर हाथ रखकर दें, तो यह जीवन संवर जाए, संभल जाए, कोटि कोटि जन्मों की यात्रा पूरी हो जाए, सदा सदा के लिए विश्राम हो जाए, मेरी बात बन जाए।*
*ध्यान दें, आपके करोड़ों जन्मों के सत्कर्मों का फल है किसी संत का मिल जाना, संत मिल जाएँ तो संत मुख से यह पतितपावन यथार्थ रामकथा मिल जाए, और रामकथा मिल जाए, तो राम मिल जाएँ, दुख से, कष्ट से, क्लेश से, आवागमन से, सदा सदा के लिए छुट्टी हो जाए।*
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