दर्द गढ़वाली की गजल

सजा़ दीजिए नसीहत नही


गजल


अजीयत नहीं अब बगावत नहीं।
चलेगी किसी की सियासत नहीं।।


अगर जुर्म है ये मुहब्बत तो फिर।
सजा दीजिए अब नसीहत नहीं।।


हुआ बर्फ सा है तुम्हारा बदन।
बदन में जरा भी हरारत नहीं।।


करें शौक से आप रुसवा हमें।
हमें आपसे कुछ शिकायत नहीं।।


न फेरो निगाहें सनम इस तरह।
तुम्हें क्या हमारी जरूरत नहीं।।


यकीं तुम हमारा करो तो सही।
कहो साफ हमसे मुहब्बत नहीं।।


नहीं मिल रहा दिल हमारा कहीं।
कहीं आपकी तो शरारत नहीं।।


दर्द गढ़वाली, देहरादून 
09455485094


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