गजल
रात के बारह बजे थे।
आंख में सपने तेरे थे।।
आंख आंगन में रखी थी।
कान भी दर प' लगे थे।।
आंख खुलते टूट जाते।
ख्वाब पलकों में सजे थे।।
कल हमें जब वो मिला था।
आंख से आंसू झरे थे।।
हो गए बीमार उसके।
पहले हम अच्छे भले थे।।
वो हमें भी चाहता था।
हम भी उसपे मर मिटे थे।।
कर दिए बाहर चलन से।
'दर्द' जो सिक्के खरे थे।।
दर्द गढ़वाली, देहरादून
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