गजल
उसकी आंखें चुपके-चुपके देख रहा हूं।
रफ्ता-रफ्ता सपने मरते देख रहा हूं।।
धुंधली सी तस्वीर नजर आती है मुझको।
कागज में रंगों को भरके देख रहा हूं।।
वो भी आंख मिलाते मुझसे घबराता है।
मैं भी उसको डरते-डरते देख रहा हूं।।
कद वालों का कद तो घटता जाता है, अब।
बौनों के कद को मैं बढ़ते देख रहा हूं।।
दिल सहमा आंखों में दहशत, बारी-बारी।
सबकी आंखों को मैं पढ़ के देख रहा हूं।।
दर्द गढ़वाली, देहरादून
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