गजल
किस कदर मैला हुआ है।
जो बदन पहना हुआ है।।
गूंजती इसमें अजानें।
दिल मेरा मक्का हुआ है।।
क्या कहें किससे कहें हम।
घाव इक गहरा हुआ है।।
चांद है उतरा गली में।
आपका चर्चा हुआ है।।
अय खुदा हमको बचा ले।
नाखुदा भटका हुआ है।।
कर रहा हक बात यारों।
आदमी बहका हुआ है।।
चारसू होता है मातम।
क्या कहर बरपा हुआ है।।
हर कली सहमी हुई है।
फूल इक मसला हुआ है।।
आइना तो आइना है।
झूठ बस चहरा हुआ है।।
लफ्ज जूठे हैं सभी तो।
लफ्ज हर बरता हुआ है।।
आ सुनाएं शेर तुझको।
शेर इक अच्छा हुआ है।।
दर्द गढ़वाली, देहरादून
09455485094
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