अनायास ही आज सुबह घर की चौखट से अंदर बाहर जाने से उसकी उदासी सी लगी...आकर व्यक्त कर दी उसकी मार्मिक अभिव्यक्ति
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उदास है....आज मेरी चोखट*
अरी चौखट आज तू उदास क्यों है किसी ने तो मिलना नहीं
फिर इंतजार क्यों है ....
खट खट होती थी न रोज
तू भी परेशान हो जाती थी कभी-कभी तो एक आया एक गया सारा दिन खटखट
आज तू उदास है चौखट...
गली शहर दुनिया की चौखट पर अब कोई खटखट नहीं होती है री चौखट.. आज तू परेशान क्यों है
हाले दिल किससे बताएगी तू
याद है वो दिन जब किसी ने
आखिरी बार तूझे खटखटाया था
भूलती जा रही हो ना
परेशान हो...
पर हां आज नीला आसमां
बेहद खुश है री
और खुश है वो पेड़ पौधे
खुश है उनका आंगन
जानती हो क्यों..... आज पंछी आजाद हैं...चिड़िया चहकने लगी उदास मन उड़ने लगा
शायद वो जानवर भी खुश हैं री खुशियां मना रहे हैं कि चलो
कुछ दिन हम भी सांस ले लेंगे जानती हो क्यों....
इस पागल मन के पगला जाने से
इस आपस कि आपाधापी मारामारी इस विस्तारीकरण.... के बाज़ार का
खामियाजा शायद भुगत रही है तू
खैर तू उदास ना हो
समय से समय को समझ गया कोई
तो फिर खटखट होगी
तेरी इंतजार खत्म होगी
मेरी ....मेरी गली की शहर की देश की दुनिया की चौखट शायद दोबारा से खटखट होने लगेगी...
पर आज तो तू उदास है री
मेरी चोखट....
*विजयेन्द्र पालीवाल*
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