नव सम्वतसर


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*नव संवत्सर हमारी विरासत*
आर्य समाज स्थापना दिवस और नूतन वर्ष की पावन बेला पर गुरुकुल बचाओ संघर्ष और गुरुकुल महाविद्यालय ज्वालापुर के संयुक्त तत्त्वावधान में हवन और संस्कृति कार्यक्रम हुए। जिसमे भारी संख्या में लोग उपस्थित रहे। 
*मुख्य वक्ता वैदिक विद्वान अंकित आर्य एडवोकेट* ने कहा कि एक साथ ही नव सृष्टिसंवत एवं विक्रमी संवत्सर का आरम्भ हुआ है। हमारे पास समय की अवधि की जो गणनायें हैं वह दिन, सप्ताह, माह व वर्ष में होती हैं। दिआज सृष्टि संवत्सर 1,96,08,53,121 आरम्भ हुआ है वहीं विक्रमी संवत् 2077 का प्रथम दिवस है।इस नवसंवत्सर के दिन का यही महत्व है कि इतने वर्ष पूर्व सृष्टि, वेद व मानव का आरम्भ यहां हुआ था तथा महान पराक्रमी आर्य वा हिन्दू राजा विक्रमादित्य ने शकों को युद्ध में पराजित कर राज्यारूढ़ हुए थे।  सृष्टि का आरम्भ चैत्र के प्रथम दिन अर्थात् प्रतिपदा को हुआ था, क्योंकि सृष्टि का प्रथम मास वैदिक संज्ञानुसार मधु कहलाता था और वही फिर ज्योतिष में चान्द्र काल गणनानुसार चैत्र कहलाने लगा था। उन्होंने कहा कि औरंगजेब के समय में भी भारत में नवसम्वतसर का पर्व मनाने की प्रथा थी। इसका उल्लेख औरंगजेब ने अपने पुत्र मोहम्मद मोअज्जम को लिखे पत्र में किया है जिसमें वह कहता है कि काफिर हिन्दूओं का यह पर्व है। यह दिन राजा विक्रमादित्य के राज्याभिषेक की तिथि है।
उन्होंने बताया कि संसार में फैले पाखण्ड और आडंबरों को खत्म करने के लिए आज ही दिन महर्षि दयानन्द सरस्वती ने मुंबई में आर्य समाज की स्थापना 1875 में की। उस समय समाज में छुआछूत,बालविवाह,जातिवाद जैसी कुरीतियाँ चरम पर थीं।जिन पर स्वामी जी ने सूक्ष्मता से विचार व विश्लेषण किया और पाया कि वेद और वेद सम्मत ही ग्राह्य एवं करणीय है तथा वेद विरुद्ध मत व मान्यतायें त्याज्य हैं। इस सिद्धान्त का पालन ही सभी मनुष्यों के लिए उत्तम व आवश्यक है। भविष्य में जैसे जैसे ज्ञान का विकास होता जायेगा तो अवश्य ही लोग वेद विरुद्ध बातों को मानना छोड़कर सत्य ज्ञान पर आधारित वैदिक मान्यताओं को ही स्वीकार करेंगे। समय परिवर्तनशील है। सत्य हर काल में टिका रहता है और असत्य नष्ट होता जाता है। यही स्थिति अविद्या व अज्ञान पर आधारित मत-मतान्तरों की अविद्यायुक्त बातों की भी भविष्य में होगी। यही वेद, ऋषि दयानन्द और सत्यार्थप्रकाश का शाश्वत् सन्देश है। सत्य पर ही यह संसार व मनुष्य समाज व व्यवस्थायें टिकी हुईं है। इसी भावना से ईश्वर-जीवात्म चिन्तन और अग्निहोत्र यज्ञ से नवसम्वतसर आदि सभी पर्वों को मनाना चाहिये। यही तो हमारी असली विरासत है। 
यज्ञ के बृह्म स्वामी विश्वानंद सरस्वती रहे। तथा संचालन वीर प्रभाकर ने किया। 
इस दौरान विश्वजीत आर्य, ऋषभ आर्य, प्रभात चौहान, नितिन चौहान, पुष्प्रेंद्र आर्य,डा०भारत आर्य, दीप्ति आर्य, उमाशंकर, आशीष, लोकेश, योगेंद्र सिंह, धर्मेंद्र जी समेत भारी संख्या में लोगों  उपस्थित रहे


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