सुनो प्रकृति क्या कहती है
ग्रहण काल में जो लोग भगवान को कपड़ों से ढककर, मंदिरों को बंद करके भगवान की सुरक्षा करने का नाटक करते हैं और ग्रहण की समाप्ति पर नहा धोकर, जनेऊ बदकर दंभ का प्रदर्शन करते हैं, उन्हें अब तो समझ आएगा कि मनुष्य के हाथ में कुछ नहीं है। सबकुछ उसी के हाथ में है। वो जैसा चाहेगा दुनिया वैसे चलेगी । हमें तो शांत भाव से उसकी आराधना करनी है और धर्म का निर्वाह करना है।
हमें यज्ञोपवीत संस्कार के समय बताया गया था कि शुद्धि किस प्रकार करनी है। लघु शंका के बाद तीन बार हाथ धोने हैं राख से या मिट्टी से,और दीर्घ शंका के बाद ग्यारह बार उसी तरह हाथ धोने हैं। कितने बार ग्रास चबाना है।येसब और भी बहुत कुछ,जो अब समझ आ रहा है।
क्यों बनते अनजान?
सुनो प्रकृति का क्रंदन।
करें प्रकृति का मान,
करें इसका नित वंदन।
प्रकृति दाता है सखे,
नहीं लेती है कोई मोल।
यही है सच्चा ज्ञान,
करो इसका नित मंथन।
भारतीय संस्कृति की महानता --
युग की है पहचान,
भारतीय संस्कृति अपनी।
भारत की है जान,
भारतीय संस्कृति अपनी।
इसका नहीं सानी,
विश्व भर में कहां है कोई।
ये पृथ्वी की जान,
भारतीय संस्कृति अपनी।
डॉ प्रदीप जोशी
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