स्वदेशी संदेश


करोना आपदा की चुनौती स्वीकार!,
कठिनाई को सेवा के अवसर में बदलेंगे!


मैं तो अभी बेंगलुरु में ही हूं। किंतु दोपहर को,हरियाणा के प्रांत संयोजक सीतेंद्र जी का फोन आया "सतीश जी! आपका आगे प्रवास तो है, पर क्या करें? सब तरफ करोना की चर्चा है।"
मैंने कहा "हाथ पर हाथ रखकर बैठना तो है नहीं, चुनौती को स्वीकार करना चाहिए और उसे अवसर में बदलना चाहिए।" समाज की सहायता में क्या क्या कर सकते हैं, सोचो!"
तो वे स्वयं बोले "गुरूग्राम में हम कपूर और गूगल की हवन सामग्री से एक बड़ा हवन का कार्यक्रम रखते हैं। उससे वातावरण भी शुद्ध होगा और लोगों को हम प्रतिरोधक तरीके अपनाने को जागृत भी कर सकते हैं। मैंने पूछा "और क्या हो सकता है?"
तो वे बोले "हां! हम आयुर्वेदिक काढ़ा बनवाकर सार्वजनिक तौर पर लोगों को पिलाने का सोचते हैं। इसके अलावा गिलोय, तुलसी, अदरक, हल्दी, दालचीनी का घर में प्रयोग करें इसके लिए जनजागृति भी फैला सकते हैं।"
मैंने उन्हें शाबाशी दी और सोचा कि वास्तव में इस समय, समाज को संभालना व लोगों को वायरस से निजात दिलाने के तरीकों के बारे में बताना श्रेष्ठ कार्य है।यही स्वदेशी कार्य है...आप भी सोचें।
अनेक स्थानों पर कार्यकर्ता इस तरफ तेजी से लग भी गए हैं। इस को जन-आंदोलन बनाना होगा ऑनलाइन ऑफलाइन दोनों तरीकों से।
'एक भी व्यक्ति छूट गया, तो सुरक्षा चक्र टूट गया' इस विचार को लेकर एक एक व्यक्ति तक बचाव के तरीके बताने को जुटना~ सतीश कुमार


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