टूटते घर छूटते अपने कहानी घर घर की

आज बंटवारा कर ही दो,


घर घर की कहानी 


आज सुबह भाभी झुंझला कर बोली,
अजी सुनते हो ?
ऐसा कह कर मुंह खोली !
आज बंटवारा कर ही दो,
घर को ख़ुशियों से भर ही दो !
भाईं तुम्हारा निठल्ला,
हमारे ही टुकड़ों पर पलता है !
कुछ काम धंधा नहीं करता,
यह बात मुझे बहुत ही खलता है।
मां बाप तुम्हारे दिन-भर सोते रहते,
उनका भी बोझ हमी ढ़ोते रहते ।
बहन तुम्हारी अभी कुंवारी है ,
उसकी शादी की हमारे ऊपर ज़िम्मेदारी है ।
हम दो अलग रह लेते है ,
मां-बाप , बहन , को छोटे में कर देते है ।
शहर में जाकर कही घर बनवाते है ,
हम दोनो ख़ुशी-ख़ुशी वही बस जाते है ।
भैया बहुत देर तक निह्शब्द थे ,
भाभी की ज़ुबान की आगे बद्ध थे !
काफ़ी देर से सबकुछ चुपचाप सुन रहे थे ,
मन ही मन कुछ बुन रहे थे !
यह सब सुन कर मैं कुछ बोलूं ऐसी मेरी इच्छा थी ,
भैया क्या जबाब देते है ,बस उसी की प्रतीक्षा थी !
जब भाभी नहीं थमी ,तब भैया ने अपना मौन व्रत तोड़ा,
भाभी की तरफ़ अपना मुंह मोड़ा!
जो इन्हें छोड़ने कि बात करती हो ,
आज बंटवारा कर दो ,ऐसे मेरे कान भरती हो ।
घर से अपनो क़े जाते ही ,यह घर मकान हो जाएगा,
बोलतीं दीवारें, गूंजती अपनो की हंसी, सब बेज़ुबान हो जाएगी।
भाई मेरा बेशक कुछ नहीं करता,
वो मुझ पर बोझ रहे, ऐसा वो दिन भर सोचता ।
नौकरी वह भी करना चाहता है ,
वरना डिग्री लेकर भरी दुपहरी में कौन चलता है ।
मैं तो भैया की खिलौने से खेलूंगा,
मुझे कपड़े की क्या ज़रूरत ,मैं तो उनके ही पहन लूंगा!
तुम बताओ इस अनमोल प्यार की क्या क़ीमत है ,
जो अपनो से दूर कर दे ,ऐसे एशो-आराम की क्या ज़रूरत है ।
बचपन में मेरी सूनी कलाई को मेरी बहन भरती रहती,
मां भैया को बड़े होने दो ,
एक साथ सब वसूल लूंगी ,ऐसा कहती रहती!
निहस्वार्थ भाव से निभाया गया उस बहन का फ़र्ज़,
इतने ढेरों प्यार का अभी भी है मुझ पर क़र्ज़!
मुझे पता है मेरी छोटी अभी भी कुंवारी है,
मुझे ख़ुशी है कि उसकी शादी की हमारे ऊपर ज़िम्मेदारी है!
बचपन में मैं बहुत ही बीमार था,
बीमारी के कारण बहुत ही लाचार था!
मेरी मां मेरे पास बैठ कर रात भर रोयी थी ,
उसका बेटा तकलीफ़ में था ,इसलिए वह रात भर नहीं सोयी थी !
सुबह सर्द में मेरे पिता फटे कपड़े पहन कर काम पर जाते थे ,
दिन-रात कड़ी मेहनत करके ,हमारी ज़रूरत की चीजों को लाते थे!
जब हम घर में चार ,और रोटी तीन होती थी ,
मुझे भूख़ नहीं है ,मेरा पेट भरा है ऐसा कहने वाली मेरी मां होती थी !
जब मेरी शादी होने वाली थी ,
मेरे घर एक और बेटी आ रही, ऐसा कहने वाली मेरी मां थी !
बेशक़ आज मेरा जीवन रंगीन है ,
पर बचपन भी मेरा ,रहा बहुत हसीन है ।
तुम बताओ किस चीज़ का मैं करूं बंटवारा,
उस मां का जिसके हाथ पर सिर रख कर मैंने पूरा बचपन गुज़ारा !
या उस लक्ष्मण जैसे छोटे भाई का ,
या मुझे जन्म देने वाली उस माई का !
आज तो मैं तुमको माफ़ करता हूं ,
आज मैं अपनो के लिए इंसाफ़ करता हूं !
अग़ली बार अगर बंटवारे की बात कहोग़ी,
ताउम्र तुम मायके में ही अपने रहोग़ी!
जैसे तुमको तुम्हारी मां की याद सताती है ,
ठीक वैसे ही मेरे अपनो को मेरी याद आती है!
तुम्हें क्या पता तुम तो कल आयी हो ,
मुझसे पूछो मेरे लिये इन्होंने कितनी परेशानी उठाईं है ।
भाभी ने हाथ जोड़ कर बोला,
आज मेरे मन का मैल साफ़ हो गया,
मैं तो भूल गयीं थी ,
शादी के बाद यह मेरा भी परिवार हो गया।
भैया बोले,१०० में से ९० घर की यही कहानी है,
बचपन में जिन कंधो ने बोझ उठाया,
आज उनको साथ रखने में हमें क्या परेशानी है


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