त्रिवेंद्र सरकार का साहसिक निर्णय

!


उच्च न्यायलय के निर्णय का सम्मान 


!पदोन्नति में आरक्षण,
      भारतीय का मौलिक अधिकार नहीं!!
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देश की सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तराखंड सरकार द्वारा प्रमोशन में आरक्षण पर दायर याचिका की सुनवाई करते हुए स्पष्ट किया था कि शासकीय सार्वजनिक पदों पर ‘प्रोन्नति में आरक्षण’ भारतीय नागरिक के मौलिक अधिकारों में नहीं आता है, साथ ही राज्य सरकारों को पदोन्नति में आरक्षण के  संदर्भ में बाध्य नहीं किया जा सकता। न्यायाधीश एल नागेश्वर राव और न्यायाधीश हेमंत गुप्ता की दो सदस्यीय पीठ ने अपने फैसले में कहा था कि न्यायालय राज्य सरकारों को पदोन्नति में आरक्षण प्रदान करने हेतु आदेश जारी नहीं कर सकता है।प्रोन्नति में आरक्षण राज्य सरकारों के विवेकाधिकार पर निर्भर करता है।
  राज्य की वर्तमान त्रिवेद्र सिंह रावत सरकार ने सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने के उद्देश्य से स्थापित आरक्षण, विशेष तौर पर पदोन्नति में आरक्षण की व्यवस्था का माननीय सर्वोच्च न्यायालय के सुझावों का गहनता से विश्लेषण कर पदोन्नति में आरक्षण को समाप्त करने का ऐतिहासिक निर्णय लेकर राजकीय सेवाओं में वरिष्ठता एवं योग्यता के मापदण्ड को अपनाते हुए पदोन्नति में  सूचिता एवं पारदर्शिता का परिचय दिया है। साथ ही लम्बे समय से पदोन्नति में आरक्षण को समाप्त करने को लेकर आन्दोलनरत सामान्य, ओ बी सी श्रेणी के कर्मचारियों की बड़ी जीत हुई है।पदोन्नति में आरक्षण को समाप्त करना त्रिवेद्र सरकार का समता, समानता की दिशा में लिया गया फैसला मील का पत्थर साबित होगा और यह त्रिवेंद्र सरकार का साहसिक निर्णय है परिणाम चाहे जो भी निकले।


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