*कलयुग मे सतयुग का अहसास
ऐसा लग रहा है कि कलयुग में सतयुग आ गया है। कितना सादा जीवन हो गया। दाल रोटी ,कुछ कपड़े ,एक घर बस इतना ही काफी लग रहा है।थोड़े में भी आनंद आ रहा है।सुबह दुर्गा पूजा , फिर रामायण ,महाभारत ,फिर सन्त मणि , वाणी का भाव लिखना ,शाम को हवन ,आरती फिर महाभारत ,रामायण।*
*सारे घर के सदस्यों का यही रूटीन हो गया है।सब मिल कर काम करते हैं।*
*भागदौड़ की जिंदगी में ठहराव आ गया है। शांति , संतोष सबके मन मे है।*
*सोना , चांदी, धन ,सुंदर ड्रेस कोई काम नही आ रहा। थोड़े में गुजारा हो रहा है । यही तो है संतोष धन। सब कुछ था ,बस यही तो नही था।*
*भक्ति की लहर बहती रहती हैं।* *न कोई भाव बढ़ने की खुशी, न कोई घटने का दुख*। *न कोई पर चिंता, न कोई पर निंदा, सिर्फ और सिर्फ परमार्थ का भाव*। *मुनष्य पागल सा हो गया था। अब जीवन पाने को गल रहा है। मतलब जीवन है,तो जग है, अन्यथा*.......
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