कविता

पुष्प राज की अभिलाषा 


कविता, मत निकलो घरो से


हम तो इसलिए बाहर नहीं निकलते घर से
क्या पता श्रीमान पुलिस आ जाए किधर से।



कहते  थे जो फुर्सत भी नहीं है मरने की
आज वही फुर्सत में बैठे हैं इसी डर से
कोरोनावायरस है वह मजाक नहीं
यह नहीं देखेगा की आप है  मुजफ्फरनगर से।



अब तो इतने हितेषी हो गए हैं मेरे
घर मेंही रहना लिखलिख कर भेज रहे उधर से
मैं भी देता हूं यही संदेश ध्यान रखना जरा
आ सकता है वह शैतान किसी भी शहर से।



आज मैं भी तो नहीं लिख पाया था कुछ
बच्चों के साथ लूडो खेल रहा था  दोपहर से
फिर सोचा चलो अब कुछ लिख ही लेते हैं
घर बैठकर ही बचेगी जान इस कहर से।



जो घर बैठे वहीं सुरक्षित अनुभव है मेरा
दुनिया में लाखों मर चुके हैं करोना के जहर से
ज्यादा के चक्कर में  गांव छोड़ा था जिन्होंने
आज लौट कर आ रहे हैं वह उसी शहर से।



जिंदा रहे तो फिर कमा सकते हैं बहुत
निकल जाएगा बुरा समय कुदरत की मैहर से
घर में रहना फ्री का इलाज यही है साथियों
वरना धीमान अस्थियां बहा देंगे गंगानहर से।


पुष्प राज धीमान की कलम से 


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