एक योगी की कहानी...
"कल रात से कहाँ था रे तु ?
यह क्या गेंहुआ अँगोछा पहन के आया है ?
तेरी अम्मा पूरी रात पहाड़ियों में ढूंढ ढूंढकर पागल हुए जा रही है और तु कहाँ भाग गया था ?"
अजय चुपचाप पिता की डांट सुनता रहा।
तु बोलता क्यों नहीं है?
कहीं गलत संगतियों में पड़कर कोई अपराधी तो नहीं बन गया है? अरे बोल, बोलता क्यों नही है!
"मैं सोनपहाड़ी वाले नाथों के पास था" - अजय ने सिर झुकाए जवाब दिया।
वहाँ क्या कर रहा था मेरे बेटे? माँ सावित्री ने सिर पर हाथ रखकर प्यार से पूछा।
माँ! मैंने सन्यासी बनने का विचार किया है !
क्या? तु पागल तो नहीं हो गया है??
ये क्या कह रहा है?
कोई ऐसे ही सन्यासी नहीं होता, ऐसी बातें मत कर!
तु तो विज्ञान की पढ़ाई करके वैज्ञानिक बनना चाहता था रे!
नही माँ ! मैं सचमुच सन्यासी बनना चाहता हूं ...
मेरा प्रारब्ध यहां नहीं है, यह समाज मुझे आर्तभाव से पुकार रहा है।
मुझे जाना होगा माँ!
किसी को तो इस यज्ञ की आहुति बनना होगा।
तो क्या तु कभी वापस नहीं आएगा?
बीच में पिता आनंद बिस्ट ने रोते हुए पूछा - "जब मैं मर रहा होऊंगा, क्या तब भी नहीं?
पिताजी! मैं अपने कर्मों से आपको तर्पण दूँगा।
आज पिता की मौत का समाचार सुनकर भी रुंधे हुए गले से अफसरों को मीटिंग में कोरोना सम्बंधित आदेश दे रहे थे और उन्होंने पिता की अंतिम संस्कार से ऊपर अपने कर्म को रखा, अपने प्रदेश की जनता को रखा और अब भी प्रदेश की सेवा में निरंतर सेवा लगे हुए हैं। ऐसे हैं महाराज श्री MYogiAdityanath जी। प्रभु श्री राम ने यूँ ही नहीं कहा था कि संत से बड़ा राजा कोई हो ही नहीं सकता। साथ ही राजा के गुण बताते हुए प्रभु ने कहा था कि एक राजा के लिए उसकी प्रजा ही सर्वस्व है। प्रजा के लिए जो राजा अपना सर्वस्व त्यागने की क्षमता रखे, वही सर्वश्रेष्ठ है।
अंततः दिवंगत आत्मा को कोटि कोटि नमन एवं भावपूर्ण श्रद्धांजलि🙏
साभार
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