हाय रे ये विवशता

एक बार बस घर जाने दो


जिंदा रहे तो फिर से आयेंगे
तुम्हारे शहरों को आबाद करने
वहीं मिलेंगे गगन चुंबी इमारतों के नीचे
प्लास्टिक की तिरपाल से ढकी अपनी झुग्गियों में


चौराहों पर अपने औजारों के साथ
फैक्ट्रियों से निकलते काले धुंए जैसे
होटलों और ढाबों पर खाना बनाते, बर्तनो को धोते
हर गली हर नुक्कड़ पर फेरियों मे
रिक्शा खींचते आटो चलाते मंजिलों तक पहुंचाते


हर कहीं हम मिल जायेंगे
पानी पिलाते गन्ना पेरते
कपड़े धोते प्रेस करते
समोसा तलते पानीपूरी बेचते


ईंट भट्ठों पर
तेजाब से धोते जेवरात
पालिश करते स्टील के बर्तनों को
मुरादाबाद ब्रास के कारखानों से लेकर
फिरोजाबाद की चूड़ियों
पंजाब के खेतों से लेकर लोहामंडी गोबिंद गढ़
चायबगानों से लेकर जहाजरानी तक
मंडियों मे माल ढोते 
हर जगह होंगे हम


बस इस बार
एक बार घर पहुंचा दो
घर पर बूढी मां है बाप है
सुनकर खबर वो परेशान हैं
बाट जोह रहे हैं काका काकी
मत रोको हमे जाने दो
आयेंगे फिर जिंदा रहे तो
नही तो अपनी मिट्टी मे समा जाने दो ....✍✍


                                        *अनाम मजदूर*😢😢


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