मेरी माँ कितनी मेरी क्या बस एक दिन के लिए

चारो तरफ सोशल मिडिया पर मदर्स डे की  जयकार, बधाई है... 
तो यह वृद्ध आश्रम में किसकी माँ आई है... 


 मदर्स डे पर सब माँ की तस्वीरें साझा करते दिखाई दे रहे हैं और अपनी माँ  के साथ वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर डाल रहे हैं इस मदर्स डे पर शुभकामनाओं की आपाधापी में हरिद्वार के युवा गौतम खट्टर ने ह्रदय को छूने वाला मार्मिक लेख लिखा है आपके साथ साझा कर रहे हैं... गौतम खट्टर लिखते हैं आज संपूर्ण विश्व मदर्स डे मना रहा भारत में भी इसकी होड़ लगी है लोग अपनी मां की तस्वीरें साझा कर रहे हैं सोशल मीडिया पर मां के साथ वीडियो अपलोड कर रहे हैं सभी अपनी मां को विश्व की सर्वश्रेष्ठ मां बता रहे हैं अच्छी अच्छी पंक्तियां लिख रहे हैं लेकिन चौंकाने वाली बात यह है जो पंक्तियां लिखी जा रही है वह अंतः करण से ना आकर कॉपी पेस्ट ज्यादा हो रही है ऐसे में पता चलता है हम अपने विचार रखने में कितने सक्षम हैं मां के साथ फोटो डालना गलत नहीं है लेकिन क्या आम दिनों में भी हम उसकी इतनी कद्र करते हैं जितनी सोशल मीडिया पर मदर्स डे के दिन नजर आ रही है लेकिन यह तो एक ट्रेंड चल गया है सब देखा देखी काम पर लग गए हैं और सबको काम मिला हुआ है पर सोचने वाली बात यह है कि क्या हमारा कोई भी दिन मां की उपस्थिति के बिना बेहतर बीत सकता है यह तो सभी जानते ही होंगे जिस दिन मां खाना ना बना कर दे उस दिन बच्चों की और परिवार की क्या हालत होती है किसी से छिपी नहीं तात्पर्य है यह है कि कोई भी दिन मां के बिना नहीं होता इसीलिए हमारी संस्कृति में 365 दिन मां के होते हैं ना कि 1 दिन, मैं मदर्स डे का विरोध नहीं कर रहा हूं बस इतना कहना चाहता हूं हमारी भावनाएं हैं हमारी संवेदनाएं हैं और हमारा प्रेम है यह ऐसी चीजें हैं जो किसी औपचारिकताओं की मोहताज नहीं होती तो यह औपचारिकता क्यों क्या हम उसके लिए औपचारिकता कर रहे हैं जिसके करीब हम सबसे अधिक हैं हम उस दौर में जी रहे हैं जहां एक और तो हम मदर्स डे मना रहे हैं वहीं दूसरी ओर भारत में वृद्ध आश्रमों की संख्या बढ़ती जा रही है आज हमें इसका समाधान निकालने की आवश्यकता है कि भारतीय वृद्ध आश्रमों की संख्या कैसे घटाई जाए क्या उन वृद्ध आश्रमों में किसी की मां नहीं रहती और जिसकी रहती है क्या उसने आज अपनी मां की तस्वीरें साझा नहीं की होगी हो सकता है औपचारिकता निभाने के लिए कर दी है क्योंकि समाज को दिखाना भी है प्रश्न यह भी है कि  हम कितने बनावटी हो गए हैं हमें जाना कहा था और हम जा कहां रहे हमें करना क्या था और हम कर क्या रहे हैं .....  विचार अवश्य कीजिएगा


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