जिस जिससे पथ पर स्नेह मिला
उस उस राही को धन्यवाद !!
जीवन अस्थिर अनजाने ही
हो जाता पथ पर मेल कहीं !
सीमित पग-डग, लम्बी मंज़िल
तय कर लेना कुछ खेल नहीं !!
दाएँ-बाएँ सुख-दुख चलते
सम्मुख चलता पथ का प्रमाद !
जिस जिससे पथ पर स्नेह मिला
उस उस राही को धन्यवाद !!
साँसों पर अवलम्बित काया
जब चलते-चलते चूर हुई !
दो स्नेह-शब्द मिल गये, मिली
नव स्फूर्ति थकावट दूर हुई !!
पथ के पहचाने छूट गए
पर साथ-साथ चल रही याद !
जिस जिससे पथ पर स्नेह मिला
उस उस राही को धन्यवाद !!
जो साथ न मेरा दे पाये
उनसे कब सूनी हुई डगर !
मैं भी न चलूँ यदि तो भी क्या
राही 'मर' लेकिन राह 'अमर' !!
इस पथ पर वे ही चलते हैं
जो चलने का पा गये स्वाद !
जिस जिससे पथ पर स्नेह मिला
उस उस राही को धन्यवाद !!
कैसे चल पाता यदि न मिला
होता मुझको आकुल-अन्तर !
कैसे चल पाता यदि मिलते
चिर-तृप्ति अमरता-पूर्ण प्रहर !!
आभारी हूँ, उनका जो देते,
शुभ, मङ्गलकामना प्रसाद !
जिस जिससे पथ पर स्नेह मिला,
उस उस राही को धन्यवाद !!!
आचार्य करूणेश मिश्र के भाव पुष्प
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