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कहानी राम मंदिर के लिए बलिदान देने वाले दो सगे भाई रामकुमार व शरद कोठारी (माहेश्वरी ) की.... जिन्हें मुलायम सिंह की पुलिस ने घर से खींच सिर में गोली मारी...🙏🙏 22 साल के रामकुमार और 20 साल के शरद कोलकाता में अपने घर के करीब बड़ा बाजार में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा में नियमित रूप से जाते थे। दोनों द्वितीय वर्ष प्रशिक्षित थे। कई अन्य स्वयंसेवकों की तरह ही राम और शरद ने भी विहिप की कार सेवा में शामिल होने का फैसला किया। 20 अक्टूबर 1990 को उन्होंने अयोध्या जाने के अपने इरादे के बादे में पिता हीरालाल कोठारी (माहेश्वरी )को बताया। उसी साल दिसंबर के दूसरे हफ्ते में बहन पूर्णिमा की शादी होनी तय थी। पिता ने कहा- कम से कम एक भाई तो घर पर रुको ताकि शादी के इंतजाम हो सके। पर दोनों भाई इरादे से पीछे नहीं हटे। बकौल पूर्णिमा, “आखिर में एक शर्त पर पिता राजी हुए। उनसे हर रोज अयोध्या से खत लिखते रहने को कहा। अयोध्या के लिए निकलने से पहले उन्होंने ढेर सारे पोस्टकार्ड खरीदे ताकि चिट्ठियॉं लिख सके। मुझे जब पता चला कि भाई अयोध्या जा रहे हैं तो मैं दुखी हो गई। उन्होंने वादा किया कि वे मेरी शादी तक जरूर लौट आएँगे।” दिसंबर के पहले हफ्ते में पूर्णिमा को जो चिट्ठी मिली वो इनमें से ही एक पोस्टकार्ड पर लिखा गया था। पूर्णिमा की शादी भी उसी साल दिसंबर में हो गई। लेकिन, बहन से किया वादा पूरा करने दोनों भाई घर लौट नहीं पाए। राम और शरद ने 22 अक्टूबर की रात कोलकाता से ट्रेन पकड़ी। हेमंत शर्मा ‘युद्ध में अयोध्या’ में लिखते हैं- बनारस आकर दोनों भाई रुक गए। सरकार ने गाड़ियॉं रद्द कर दी थी तो वे टैक्सी से आजमगढ़ के फूलपुर कस्बे तक आए। यहॉं से सड़क रास्ता भी बंद था। 25 तारीख से कोई 200 किलोमीटर पैदल चल वे 30 अक्टूबर की सुबह अयोध्या पहुॅंचे। 30 अक्टूबर को विवादित जगह पहुॅंचने वाले शरद पहले आदमी थे। विवादित इमारत के गुंबद पर चढ़कर उन्होंने पताका फहराई। दोनों भाइयों को सीआरपीएफ के जवानों ने लाठियों से पीटकर खदेड़ दिया। शरद और रामकुमार अब मंदिर आंदोलन की कहानी बन गए थे। अयोध्या में उनकी कथाएँ सुनाई जा रही थी। दोनों भाइयों के साथ कोलकाता से अयोध्या के लिए निकले राजेश अग्रवाल के मुताबिक वे 30 अक्टूबर को तड़के 4 बजे अयोध्या पहुॅंंचे। वे बताते हैं कि मस्जिद की गुंबद पर भगवा ध्वज फहरा कोठारी बंधुओं ने उस समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे मुलायम सिंह यादव की दावे की हवा निकाल दी थी। मुलायम ने कहा था, “वहॉं परिंदा भी पर नहीं मार सकता।” फिर आया 2 नवंबर का दिन। युद्ध में अयोध्या के अनुसार दोनों भाई विनय कटियार के नेतृत्व में दिगंबर अखाड़े की तरफ से हनुमानगढ़ी की ओर बढ़ रहे थे। जब सुरक्षा बलों ने फायरिंग शुरू की तो दोनों पीछे हटकर एक घर में जा छिपे। सीआरपीएफ के एक इंस्पेक्टर ने शरद को घर से बाहर निकाल सड़क पर बिठाया और सिर को गोली से उड़ा दिया। छोटे भाई के साथ ऐसा होते देख रामकुमार भी कूद पड़े। इंस्पेक्टर की गोली रामकुमार के गले को भी पार कर गई। दोनों ने मौके पर ही दम तोड़ दिया। उनकी अंत्येष्टि में सरयू किनारे हुजूम उमड़ पड़ा था। बेटों की मौत से हीरालाल को ऐसा आघात लगा कि शव लेने के लिए अयोध्या आने की हिम्मत भी नहीं जुटा सके। दोनों का शव लेने हीरालाल के बड़े भाई दाऊलाल फैजाबाद आए थे और उन्होंने ही दोनों का अंतिम संस्कार किया था। भाइयों की याद में पूर्णिमा उनके दोस्त राजेश अग्रवाल के साथ मिलकर ‘राम-शरद कोठारी स्मृति समिति’ नाम से एक संस्था चलाती हैं। ऐसे वक्त में जब सुप्रीम कोर्ट के फैसले से अयोध्या में भव्य राम मंदिर के निर्माण का रास्ता साफ हो चुका है राम और शरद की स्मृतियॉं उस ‘शौर्य’ की पहचान है जिसके कारण यहॉं तक का सफर पूरा हो पाया है। कोठारी बंधुओ को शत शत नमन जय श्री राम 🙏🙏🙏🙏🌹🌹🌹🌹🙏🙏🙏🙏
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