साभार (आन इंडिया) ‼️〰️🌺#थाने_में_श्री_काल_भैरव_का_राज🌺〰️‼️ वाराणसी। काशी में एक ऐसा भी थाना है जहां आज भी इस थाने का प्रभारी थाने की मुख्य कुर्सी पर बैठने की हिम्मत नहीं जुटा पता वो बैठा भी होता है तो अपने ऑफिस में कुर्सी के बगल में एक दूसरी कुर्सी लगाकर। दरअसल ये थाना है वाराणसी कोतवाली का जहां के इंचार्ज बाबा कालभैरव को कहा जाता हैं। यही नहीं आज तक इस थाने का निरीक्षण किसी डीएम या एसएसपी ने नहीं किया है क्योंकि वो तो खुद ही अपने ज्वाइनिंग से पहले यहां आशीर्वाद लेने आते हैं और जिसे बाबा चाहते हैं वो नगरी में कार्य करता है। तो आइए जाने क्या है इस मंदिर और इस थाने की अनसुनी कहानी।वाराणसी विशेश्वरगंज इलाके में शहर का कोतवाली थाना है और इसी थाने के ठीक पीछे बाबा कालभैरव का मंदिर है। वर्तमान प्रभारी राजेश सिंह ने OneIndia से बात करते हुए कहा कि ये परंपरा आज की नहीं है। ये परंपरा सालों से चली आ रही है, कोतवाली थाने के इस इंस्पेक्टर के ऑफिस में दो कुर्सियां लगाई गई हैं। जिसमे जो मेन चेयर है उसपर बाबा काल भैरव विराजमान होते हैं और इस थाने का इंस्पेक्टर बगल की कुर्सी पर बैठता है। यही नहीं राजेश सिंह ने कहा की इस थाना क्षेत्र में अपराध से लेकर सामाजिक कार्यों और फरियादियों की फरियाद का निस्तारण बाबा करते हैं।इसीलिए इन्हें विश्वनाथ की नगरी का कोतवाल भी कहा जाता है। जिस भी आईएएस और आईपीएस की तैनाती शहर में होती है या इस थाने में जिस भी पुलिस वाले की तैनाती होती है वो बाबा काल भैरव की पूजा करने के बाद ही अपना कामकाज शुरू करता है। इस थाने पर तैनात सिपाही सूर्य नाथ चंदेल ने बताया कि मैं 18 साल से खुद इस थाने में तैनात हूं। मैंने अभी तक किसी भी थानेदार को अपनी कुर्सी पर बैठते नहीं देखा। बगल में चेयर लगाकर ही प्रभारी निरीक्षक बैठता है। हालांकि, इस परंपरा की शुरुआत कब और किसने की, ये कोई नहीं जानता। लेकिन माना जाता है कि अंग्रेजों के समय से ही ये परंपरा चली आ रही है।साल 1715 में बाजीराव पेशवा ने काल भैरव मंदिर का बनवाया था। वास्तुशास्त्र के मुताबिक बना ये मंदिर आज तक वैसा ही है। बाबा काल भैरव मंदिर के महंत-पंडित नवीन गिरी ने बताया, यहां हमेशा से एक खास परंपरा रही है। यहां आने वाला हर बड़ा प्रशासनिक और पुलिस अधिकारी सबसे पहले बाबा के दर्शन कर उनका आशीर्वाद लेता है। काल भैरव मंदिर में रोजाना 4 बार आरती होती है। रात की शयन आरती सबसे प्रमुख है। आरती से पहले बाबा को स्नान कराकर उनका श्रृंगार किया जाता है। मगर उस दौरान पुजारी के अलावा मंदिर के अंदर किसी को जाने की इजाजत नहीं होती।बाबा को सरसों का तेल चढ़ता है। एक अखंड दीप हमेशा जलता रहता है। वहीं बटुक भैरव मंदिर महंत विजय पुरी ने बताया, 'ब्रह्मा ने पंचमुखी के एक मुख से शिव निंदा की थी। इससे नाराज काल भैरव ने ब्रह्मा का मुख ही अपने नाखून से काट दिया था। काल भैरव के नाखून में ब्रह्मा का मुख अंश चिपका रह गया, जो हट नहीं रही था। भैरव ने परेशान होकर सारे लोकों की यात्रा कर ली, लेकिन ब्रह्म हत्या से मुक्ति नहीं मिल सकी। तब भगवान विष्णु ने कालभैरव को काशी भेजा। काशी पहुंचकर उन्हें ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्ति मिली और उसके बाद वे यहीं स्थापित हो गए।


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