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*आज 28 सितंबर को भारत के वीर पुत्र हुतात्मा भगत सिंह का जन्मदिवस है।इस अवसर पर हम उनका श्रद्धापुर्ण स्मरण करते है।* *आर्यों द्वारा स्थापित डीएवी कॉलेज, लाहौर का भव्य भवन जहा पर भाई परमानंद जी ने भगत सिंह नाम की चिंगारी को मशाल मे बदल दिया था...* *भगत सिंह के दादा श्री अर्जुन सिंह जी का यज्ञौपवीत संस्कार स्वयं "महर्षि दयानंद सरस्वती" ने ही करवाया था ओर ओर दादा ने अपने दोनो पोतों का....."स्मरण" रहे सिख समाज मे यज्ञोपवित संस्कार नही होता हैं...* ===================================== सरदार अर्जुन सिंह जी एक कट्टर आर्य समाजी थे। वे महर्षि दयानंद जी के आरम्भिक शिष्यों में से एक थे जिनका यज्ञोपवित संस्कार खुद महर्षि दयानंद जी ने करवाया था । लोगो ने तो मंदिर से आर्य समाज तक का सफ़र तय किया था *लेकिन सरदार अर्जुन सिंह जी ने गुरुद्वारे से आर्य समाज तक कासफर तय किया था।* उनको वैदिक साहित्य का इतना अध्ययन था की मूर्ति पूजा श्राद्ध आदि विषयों पर आर्य समाज की तरफ से शास्त्रार्थ लड़ते थे । प्रतिदिन यज्ञ करना उनकी आदत थी । जब वे सफ़र में जाते थे तब भी अपनी हवन सामग्री यज्ञ कुंड इत्यादि साथ लेकर चलते थे । जब उन्होंने अपने दोनों पोतो जगत सिंह और भगत सिंह का यज्ञोपवीत करवाया था तब उन्होंने अपने दोनों पोतो को दायं और बायं बाजू के निचे लेकर ये प्रतिज्ञा ली थी की *मै अपने दोनों पोतो को देशकी बली वेदी पर दान करता हूँ।* भगत सिंह जी के पिता जी का नाम सरदार किशन सिंह था और माँ का नाम विद्यावती था । दोनों परिवार सिख थे लेकिन उनका विवाह आर्य समाज के तरीके से हुआ था अर्थात फेरे गुरु ग्रन्थ साहिब के स्थान पर यज्ञके फेरे लिए थे । *उस समय लोगो ने कहा की देखो कैसा दामाद आया है जो खुद मन्त्र पढ़ रहा है ।* भगत सिंह जी के चाचा अजित सिंह जी भी दृढ़ आर्य समाजी थे । आर्य समाज के लिए उन्होंने बहुत ट्रैक्ट लिखे जिनमे से ' विधवा की पुकार' मुख्य है । *भगत सिंह अपने दादा जी को जबभी पत्र लिखते थे तो ओ३म् और नमस्ते ही लिखते थे।* भगत सिंह आर्य समाजी लाला लाजपत राय जी द्वारा संचालित नेशनल कोलेज के छात्र थे । और प्रसिद्ध आर्य विद्वान जयचन्द्र विद्यालंकार , उदयवीर शास्त्री तथा भाई परमानन्द जी के शिष्य थे । भगतसिंह का जनेऊ संस्कार "पूजनीय प्रभो हमारे...." के रचनाकार पूज्य लोकनाथ वाचस्पति जी द्वारा हुआ था । *साभार पुस्तक : 'युगद्रष्टा भगत सिंह और उनके मृत्युंजय पुरखे'* लेखिका : सरदार भगतसिंह के छोटे भाई कुलतार सिंह जी की सुपुत्री वीरेन्द्र सिंधु https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=529586084481619&id=100022906952736 भगत सिंह लाहौर से सुदुर वामपंथ के गढ़ कलकत्ता दो बार गए पर दोनों बार आर्यसमाज (19 विधान सारणी वाली आर्यसमाज कलकत्ता) में शरण ली, उनके आर्य समाज के प्रति प्रेम का इससे ज्यादा और क्या प्रमाण हो सकता है। संलग्न फोटो:- एक प्रसिद्ध अंग्रेजी दैनिक में भगत सिंह के आर्य समाज कलकत्ता में रहने का वर्णन और आर्य समाज कलकत्ता में भगत सिंह के ठहरने के घटनाक्रम को बताता बोर्ड (पवन आर्य सवांददाता गोविंद कृपा लक्सर) ।
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