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आरक्षण से ऐसे गढ़ा जाता है एक बेहतर समाज –---------------------–-------------------------------------------- Dr राजेन्द्र भारुद,IAS वर्तमॉन में-कलेक्टर,नंदुरबार 👇👇 👉भील जनजाति में साकरी तालुका में समोदा गांव में जन्म हुआ।पिता जन्म के कुछ दिन पूर्व चल बसे। 2 भाई को पालने के जिम्मेदारी "माई'" की थी। 👉गरीबी इतनी थी की पिता की फोटो भी नही है और पिता कैसे दिखते थे ये भी पता नही। घर नही और घर का मुखिया भी नही। एक माँ 2 बच्चों के साथ। 👉 गांव के बाहर एक झोपड़ी बनाई माँ ने। और कभी घबराई नही और फूल से शराब बनाने का काम शुरू किया। दो वक्त की रोटी मिले बच्चों को ये ही जरूरत थी बस। 👉 जब मैं छोटा था तो दुकान के समय रोता और माँ शराब की 2 बूंद मुंह मे डाल देती ताकि सो जायूँ। 👉 थोड़ा बड़ा हुआ तो ग्राहकों के लिए दौड़ का मूंगफली या नाश्ते की व्यवस्था करता था। 👉माई ने ये तय कर रखा था कि दोनों बच्चे स्कूल जरूर जाएं। पेंसिल नही कॉपी नही बस पढ़ने में मजा आता था। पहले दो बच्चे थे हम जो ट्राइबल के थे और स्कूल जाते थे। माई अपनी समझ से समझाती थी पढ़ाई के बारे में। 👉 परीक्षा के समय तक पेंसिल की व्यवस्था हुई।एक बार मैं पढ़ रहा था और ग्राहक ने मूंगफली लाने को कहा तो मैंने उसे सीधे मना कर दिया।हंसी उड़ाते हुए बोला " पढ़के डॉक्टर और इंजीनियर बनेगा क्या?" मुझे आज तक ये बात याद है और लगातार चुभती रही पर माई ग्राहक से बोली हाँ बेटा ये बनेगा। 👉 फिर मैंने सब कुछ पढ़ाई में लगाना तय किया और गांव से 150 km दूर एक cbse स्कूल में पढ़ने का अवसर मिला तो माई मुझे छोड़ने आयी और छोड़कर लौटते समय हम दोनों खूब रोये। पर उसने मुझे bye कर ही दिया। 👉 इस अवसर को मैं छोड़ना नही चाहता था और जी तोड़ मेहनत में लग गया। बायो लेकर 12 वी में 97% आये और मेडिकल में सिलेक्शन हुआ। मुंबई के gs कॉलेज में खूब सारी स्कॉलरशिप के सहारे mbbs की पढ़ाई शुरू की। हॉस्टल का खर्च आदि भी। 👉 माई शराब ही बनाती रही क्योंकि यही चारा था। फाइनल ईयर में मैंने आईएएस की तैयारी शुरू की और अंत मे दोनों हाथों में दो उपलब्धि। एक डॉक्टर की और दूसरी ओर आईएएस की अच्छी रैंक। 👉 माई को तो तहसीलदार क्या होता है ये भी पता नही था ।उसकी छोटी सी दुनिया और 2 बेटे बस।जब मैं घर पहुंचा तो कुछ महत्वपूर्ण लोग आए बधाई देने। कलेक्टर और स्थानीय अधिकारी। 👉 माई को समझ ही नही आया कि हुआ क्या?😊 मैंने बताया कि डॉक्टर बन गया तो खुश हुई। फिर कहा कि अब मैं प्रैक्टिस नही करूँगा क्योंकि कलेक्टर बन गया तो वो चुप रही। उसे और पूरे गांव को समझ ही नही आया कि हुआ क्या है😊 बस ये लगा कि उनका राजू कुछ बड़ा बन गया है और लोग बधाई देने आए हैं। 👉 यहां तक कि कुछ गांव वाले लोगो ने मुझे कंडक्टर बनने की बधाई भी दी😃 👉अब मैं कलेक्टर हूँ और आदिवासी बच्चों के लिए मूलभूत व्यवस्था और जागरूकता में लगा हुआ हूं। 👉 मैं उन बच्चों को बताता हूँ कि रास्ते की बाधा नही रोकती। नदी में नहाने से पेड़ पर चढ़ने से और आम की डंडी के खेल से मैं स्ट्रांग और मजबूत बना। 👉 मेरी ताकत मेरी माई है और गांव वाले भी क्योंकि वो समान रूप से गरीब है समान संघर्ष करते हैं। वे वही खेलते है जिनसे मैंने खेला इसलिए मुझे गरीबी कभी महसूस नही हुई। 👉 मुंबई जाकर मुझे अंतर महसूस हुआ और अपने संघर्ष, अध्ययन और दृढ़ इच्छा शक्ति से इस अंतर को पाटने का निर्णय लिया। इस दौरान मैंने वो सब कुछ खोया जो एक किशोर को मिलता है ।पर अब मैं वो सब कुछ पा सकता हूँ जिसका मैं सपना देखता हूँ। 👉 👆एक छोटे से गांव से निकल कर यहाँ तक पहुंचने का अनुभव आसपास जागरूक करने का कार्य कर रहा है। उन को विश्वास मिला है कि वे भी कर सकते है और 31 साल के कलेक्टर के लिए यही उपलब्धि है... 🙏🏻❣🙏🏻 Cpd साभार- उषा यादव
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