भारत की बहादुर सिक्ख कौम (बहन मनिंनदर कौर की वाल से साभार) ये लड़ाई यूरोप के सभी स्कूलो मेँ पढाई जाती है पर हमारे देश में इसे कोई जानता तक नहीं... एक तरफ १२ हजार अफगानी लुटेरे...तो दूसरी तरफ २१ सिख... अगर आप को इसके बारे नहीं पता तो आप अपने इतिहास से बेखबर है... आपने "ग्रीक सपार्टा" और "परसियन" की लड़ाई के बारे मेँ सुना होगा...इनके ऊपर "३००" जैसी फिल्म भी बनी है...पर अगर आप "सारागढ़ी" के बारे मेँ पढोगे तो पता चलेगा इससे महान लड़ाई सिखलैँड मेँ हुई थी...बात १८९७ की है... नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर स्टेट मेँ १२ हजार अफगानोँ ने हमला कर दिया...वे गुलिस्तान और लोखार्ट के किलोँ पर कब्जा करना चाहते थे...इन किलोँ को महाराजा रणजीत सिँघ ने बनवाया था... इन किलोँ के पास सारागढी मेँ एक सुरक्षा चौकी थी...जंहा पर ३६ वीँ सिख रेजिमेँट के २१ जवान तैनात थे...ये सभी जवान माझा क्षेत्र के थे और सभी सिख थे...३६ वीँ सिख रेजिमेँट मेँ केवल साबत सूरत (जो केशधारी हों) सिख भर्ती किये जाते थे.... ईशर सिँह के नेतृत्व मेँ तैनात इन २० जवानोँ को पहले ही पता चल गया कि १२ हजार अफगानोँ से जिँदा बचना नामुमकिन है...फिर भी इन जवानोँ ने लड़ने का फैसला लिया और १२ सितम्बर १८९७ को सिखलैँड की धरती पर एक ऐसी लड़ाई हुयी जो दुनिया की पांच महानतम लड़ाइयोँ मेँ शामिल हो गयी...एक तरफ १२ हजार अफगान थे...तो दूसरी तरफ २१ सिख...यंहा बड़ी भीषण लड़ाई हुयी और 1400 अफगान मारे गये और अफगानोँ की भारी तबाही हुयी...सिख जवान आखिरी सांस तक लड़े और इन किलोँ को बचा लिया...अफगानोँ की हार हुयी...जब ये खबर यूरोप पंहुची तो पूरी दुनिया स्तब्ध रह गयी...ब्रिटेन की संसद मेँ सभी ने खड़ा होकर इन २१ वीरोँ की बहादुरी को सलाम किया...इन सभी को मरणोपरांत इंडियन ऑर्डर ऑफ मेरिट दिया गया... जो आज के परमवीर चक्र के बराबर था...भारत के सैन्य इतिहास का ये युद्ध के दौरान सैनिकोँ द्वारा लिया गया सबसे विचित्र अंतिम फैसला था...UNESCO ने इस लड़ाई को अपनी ८ महानतम लड़ाइयोँ मेँ शामिल किया...इस लड़ाई के आगे स्पार्टन्स की बहादुरी फीकी पड़ गयी...पर मुझे दुख होता है कि जो बात हर भारतीय को पता होनी चाहिए...उसके बारे मेँ कम लोग ही जानते है...ये लड़ाई यूरोप के स्कूलो मेँ पढाई जाती है पर हमारे यहा नहीं क्यो...?


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