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*गुरुदक्षिणा-मेरा समर्पण* प्रेरक प्रसंग *मुझे गर्व है कि मैं दिनेश बरेजा संघ (RSS) का बाल्यकाल से स्वयंसेवक हूँ।* साठ के दशक की बात है। चांदनी चौक के दो पार्कों में दो विद्यार्थी शाखाएं लगती थीं। भगतसिंह शाखा और हकीकत शाखा। दोनों में स्वस्थ स्पर्धा चलती थी।पूरे नगर में आयोजित होने वाली प्रतियोगिताओं में दोनों शाखाएं ही पहले दो स्थानों पर रहती थीं। १९६२ के युद्ध में चीन के हाथों मिली हार ने सभी भारतीयों के मन में देश को शक्तिशाली बनाने का भाव उत्पन्न कर दिया। संघ के स्वयंसेवक भी इससे अछूते नहीं रहे।वे भी चाहते थे कि देश शक्तिशाली बने परंतु उनका मानना था कि भारत तभी शक्तिशाली बनेगा जब संघकार्य का विस्तार होगा।संघकार्य के विस्तार के लिए धन की आवश्यकता होगी और धन आएगा गुरु दक्षिणा से। हकीकत शाखा के स्वयंसेवकों ने अपनी समर्पण राशि में २५% वृद्धि का लक्ष्य रखा। यह बात जब भगतसिंह शाखा के स्वयंसेवकों को पता चली तो उन्होंने ५०% वृद्धि का निर्णय ले लिया। हकीकत शाखा के स्वयंसेवकों ने अपनी समर्पण राशि दुगनी करने की ठान ली। शाखा के मुख्य शिक्षक मोहन जी ने ₹ १५ अपने जेब खर्च से इकट्ठा कर लिए थे।शेष नौ रुपए के लिए मां से बात की। मां बोली- बेटा महंगाई ने मेरा बजट पहले ही बिगाड़ दिया है। अपने बापू से बात करो। मोहन ने बापू से कहा मुझे नौ रुपए दे दीजिए। मैं अगले तीन महीने आपसे जेबखर्च नहीं मांगूंगा। लाला दीनानाथ बहुत सख्त थे बोले- तुझे किस काम के लिए नौ रुपए चाहिएं? मोहन बोला गुरु दक्षिणा के लिए। बापू बोले गुरु दक्षिणा के लिए सवा रुपया बहुत है। मेरे पास फिजूलखर्ची के लिए कोई पैसा नहीं है। अभी गुरु दक्षिणा में दो हफ्ते बाकी थे। मोहन ने मन ही मन एक फैसला लिया।स्कूल से लौटते समय अपना बस्ता एक सहपाठी के घर रखा और सीधा रेलवे स्टेशन जा पहुंचा।कुली का काम करके सात रुपए कमा लिए। अभी भी दो रुपए कम थे। तभी एक गड़बड़ हो गई।जिस डिब्बे के सामने खड़ा होकर वह कुली-कुली चिल्ला रहा था उसी में से चांदनी चौक के एक व्यापारी उतरे । मोहन ने देखते ही बचने की बहुत कोशिश की परंतु सेठ की नजर से बच नहीं पाया।अब मोहन को काटो तो खून नहीं तुरंत अपना बस्ता लेकर घर पहुंचा और मां को सब किस्सा सुना दिया। मां ने उसे आश्वस्त किया और अपने पीछे बिठा लिया उधर सेठ मुसद्दी लाल ने अपना ट्रेवल बैग दुकान पर रखा और सीधे लाला दीनानाथ की दुकान पर पहुंच गए। लाला से बोले- दीना कितने हज़ार का घाटा हो गया जो बेटे को कुलीगिरी करने भेज दिया? लाला को कुछ समझ नहीं आया तो बताया मोहन को क्या करते हुए पकड़ा। https://www.facebook.com/एक-कहानी-सुंदर-सी-175507860067642/ लाला दीनानाथ को बहुत गुस्सा आया। दुकान पर उपस्थित ग्राहकों को निपटा कर घर की ओर चल पड़े। दिल में गुस्से का गुबार भरा था। रास्ते में चार दुकानदारों ने सेठ मुसद्दी के सवाल को दोहरा कर गुस्से को चरम सीमा तक पहुंचा दिया। हवेली के दरवाजे पर पहुंचते ही मोहन को आवाज लगाई। पत्नी ने उन्हें शांत करने की कोशिश की और अपनी कसम देकर धैर्य से काम लेने के लिए समझाया। लाला बोले- कैसे धैर्य रखूं इस नालायक ने पूरे परिवार की नाक कटवा दी। हमें चांदनी चौक में रहने लायक नहीं छोड़ा। पत्नी बोलीं मेरे कुछ सवालों का जवाब दो यदि आप मेरी बात से संतुष्ट नहीं हुए तो हम दोनों मां बेटे को जो चाहे सजा देना। पत्नी का आत्मविश्वास देखकर लाला थोड़ा सा घबराए। फिर बोले- पूछो क्या पूछना है। पत्नी बोलीं मोहन ने आपसे नौ रुपए मांगते हुए क्या वायदा किया था? लाला बोले- तीन महीने जेबखर्च नहीं मांगूंगा। पत्नी बोलीं- आपसे सिर्फ एडवांस जेबखर्च भी नहीं दिया गया? लाला बोले- मुझे फिजूलखर्ची पसंद नहीं है। पत्नी बोलीं- *आपकी तरह या सेठ मुसद्दी के बेटों की तरह गल्ले में से पैसा नहीं चुराया यह संघ के संस्कारों का फल है।* अब मां ने अपने पर्स में से बाईस रूपए लाला के सामने रख दिए और मोहन को सामने आने के लिए कहा। मोहन ने सामने आकर पिताजी के पैर पकड़ कर कहा- *मेरे इस काम से आपको जो कष्ट हुआ उसके लिए क्षमा प्रार्थी हूं परंतु मेरा यह अटल निश्चय है कि भारत माता को मेरी समर्पण राशि चौबीस रुपए से कम नहीं होगी।* पिताजी ने अपनी जेब से तीन रुपए निकाल कर उस राशि में मिलाएं और बोले तुम चौबीस नहीं पच्चीस रुपए समर्पित करोगे। *रविवार को मंदिर में गुरु दक्षिणा कार्यक्रम था। लाला दीनानाथ भी उस कार्यक्रम में शामिल हुए। उस कार्यक्रम का अमिट प्रभाव लाला के मन पर ऐसा पड़ा कि वह स्वयं भी प्रभात शाखा के नियमित स्वयंसेवक बन गए।* *(दिल्ली प्रांत के माननीय पूर्व संघचालक श्रीमान भार्गव जी द्वारा वर्णित सत्यकथा पर आधारित। सभी नाम परिवर्तित हैं।)* *आज ही RSS(संघ) की शाखा/भारतीय संस्कारों से जुड़ने के लिए समीप के पार्क में स्वयंसेवक खोजे अथवा मुझे लिखें🙏🏻* https://t.me/joinchat/Od9IExeLPKNyztpDP1hDJQ *जय श्री राम* *सदैव प्रसन्न रहिये* *जो प्राप्त है-पर्याप्त है* *जिसका मन मस्त है* *उसके पास समस्त है!!* प्रेषक- *दिनेश बरेजा* 7840068895 फेसबुक पर "एक कहानी सुंदर सी" ( हिंदी में लिखकर ) के page को like/share कीजिये *ऐसी छोटी छोटी सुंदर दैनिक कहानियों को पढ़ने के लिए मेरे समूह *एक कहानी सुंदर सी* में जोड़ने के लिए मुझे निजी नंबर पर व्हाट्सअप्प पर लिखे
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